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17 May 2016 · 2 min read

अॉड ईवन

अॉड और ईवन” १
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निशा के घर उसकी बचपन की सहेली मोनाली आई थी। सालों बाद मिल रही थीं दोनों। मोनाली के पति का ट्रांसफर जो हो गया था निशा के ही शहर में। बहुत खुश थीं दोनों। यादों का पिटारा खोले बैठी थीं।
बातों-बातों में मोनाली ने निशा के छोटे भाई हरेश के बारे में पूछा। बहुत छोटा देखा था उसे। निशा ने बताया हरेश की शादी हो गई है चार महीने हुए। इंजीनियर है अच्छी कंपनी में।मोनाली हंस दी कि इतना बङा हो गया अपना छुटका।
“और बहू कैसी आई है” मोनाली ने पूछा।
निशा ने गर्वीले स्वर में बताना शुरु किया “बहुत अच्छी और संस्कारी है सीमा..बहुत ध्यान रखती है अपने सास ससुर और पति का..पूरे घर को अच्छे से संभाल लिया है.. घर को घर समझती है ..और तो और कभी पलट कर जबाब नहीं देती कोई कुछ कह दे तो..कहती है बड़े अधिकार समझते हैं तभी तो कुछ कहते हैँ..सच में मोनाली .. बड़ा सौभाग्य है जो इतनी सरल और घर को जोड़ कर रखने वाली लक्ष्मी जैसी लड़की हमारे घर में आई। अब मुझे मां पिताजी की बिल्कुल चिंता नहीं।भगवान करे मेरे बेटे को भी ऐसी पत्नी मिले।””
मोनाली ने खुश होकर कहा ” ये तो बहुत अच्छी बात है वरना आजकल ऐसी समझदार बहुएं मिलना मुश्किल है।”
तभी निशा का पति सोम घर में दाखिल हुआ । अपनी बीमार मां को देखकर आया था गांव से। गर्मी बहुत थी और थकान भी थी इसलिए औपचारिक अभिवादन करके वह हाथ मुंह धोने चला गया।
काफी देर तक निशा जब नहीं उठी तो सोम ने बाहर आकर उससे कहा ” मुझे आधा घंटा हो गया आए तुमने पानी तक नहीं दिया।”
सुनते ही निशा बौखला गई। सहेली के सामने बेइज्जती जो हुई थी ।
दोनों में बहस होने लगी। मोनाली सुन रही थी ।
निशा ने कर्कश स्वर में आखिरी जहर बुझा चौका लगाया ” समझती हूँ सब
गांव से आए हो। बुढ़िया ने पट्टी पढ़ाकर भेजा होगा। तभी आते ही झगड़ने लगे।”
सोम के कानों में शीशा सा घुल गया। उसकी आंखों में बीमार मां का चेहरा घूम गया जिसने ऐसे तैसे करके अपने बेटे बहू के लिए देसी घी का हलवा और पापड़ बनाकर भेजे थे ।
दिल ही दिल रोता हुआ वो घर से बाहर निकल गया क्योंकि और बातें नहीं सुन सकता था।
उधर मोनाली निशा के विचारों की अपने हिसाब से लगाई गई सम- विषमता देखकर भौंचक्की थी। ”
अंकिता

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