करते सभी सलाम
करते सभी सलाम
विधा : छंद सरसी
करते उन्हें सलाम सभी हैं, होते जो बलवान।
शक्ति भले चाहे सत्ता की, चाहे हों धनवान।।
काम निकलता जब हो जिससे, पूज्य वहीं इंसान।
समस्त दोष भुलाकर उनके, करते सब गुणगान।।
नहीं चाहते कोई अपना, करे कभी अपमान।
फिर क्यों होने लगता खुद को, कुछ ज्यादा अभिमान।।
करना चाहे कर्म न्यूनतम, मिले राह आसान।
सब सुविधा पर प्राप्त हमें हो, क्यों ऐसा अरमान।।
मिलजुल कर सब रहें परस्पर, सबका हो सम्मान।
बुद्धि विवेक समन्वित होवे, सन्मति दे भगवान्।।
__ अशोक झा ‘दुलार’ मधुबनी (बिहार)
“रचना स्वरचित एवं मौलिक है/”