प्रदीप छंद-दीप
प्रदीप छंद
मात्रा भार-29
यति16,13
पदांत-12
प्रदीप छंद=चौपाई +दोहे का विषम चरण
सृजन शब्द-दीप
मैं-मैं क्यों तू हरदम करता, अवगुण अपने छोड़ दे।
अंतस दीप जला ले मानुष,नाता रब से जोड़ दे।।
दीन दुखी सेवा कर करके, पुण्य कमाई ले कमा।
विषय विकारों को है तजना, सद्गुण भीतर में समा।।
साथ बुराई का जो देते,उनसे रिश्ता तोड़ दे।
अंतस दीप जला ले मानुष,नाता रब से जोड़ दे।।
भक्ति भाव से भज ले कृष्णा, ज्योति जला ले प्रेम की।
बुरा-बुरा क्यों मानस सोचे,बातें करना क्षेम की।।
भर अच्छाई अपने अंदर, जीवन रुख को मोड़ दे।
अंतस दीप जला ले मानुष,नाता रब से जोड़ दे।।
मारा-मारा उलझा फिरता, धन- दौलत के जाल में।
जो तेरा वो तुझ तक आये,मिल जाये हर हाल में।।
गागर भर ली जो लालच की, उसको तू बस फोड़ दे।
अंतस दीप जला ले मानुष,नाता रब से जोड़ दे।।
सीमा शर्मा ‘अंशु विजया’