ग़ज़ल
अर्कान – फै़लुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ा
मापनी – 22,22,22,2
मिस्रा – मर मत जाना उल्फ़त में।
काफ़िया – अत” की बन्दिश
रदीफ़ – में
पड़ कर हम तो उल्फत में।
आये कितनी दिक्कत में।।
हारे अपने दिल को हम,
उलझे उसकी सूरत में।
वादे पूरे शायद हो,
धोखे जब हैं नीयत में।
आशिक कैसे-कैसे हैं,
साँसे छीने चाहत में।
कुछ भी करता बंदा अब,
कुछ पैसों को हसरत में।
हर कोई अपना बनता,
जाने क्या है दौलत में।
‘सीमा’ में रह कर जीना,
मरना अच्छा इज्जत में।
सीमा शर्मा