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17 Dec 2025 · 1 min read

मुक्तक

मापनी -1222 1222, 1222 1222

अधूरे रह गए सपने,नसों में पीर बन बहते,
बने वो काँच की किरचन,निग़ाहों में रहे चुभते।।
बिछा है जाल जिसे हम फर्ज हैं कहते।
निभाये जो यहाँ उसको,कहीं के वो नहीं रहते।।

सीमा शर्मा’अंशु विजया’

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