ग़ज़ल
ग़ज़ल
अग्नि में नफ़रतों को पल में जलाए होली
हर साल जश्ने-उल्फत दिल से मनाए होली।।
हमदर्द है यह कितनी इन्सानियत की देखो,
ख़ुशियों के साल भर में पैगाम लाए होली ।
यह ही दुआ है मेरे होठों पे हर घड़ी अब,
हंसते हुए सभी की बस बीत जाए होली।
हर इक बशर के रुख पर छाए खुशी की बदली,
रोते हुओं को आ कर जिस दम हंसाए होली।
सब बैर भूल कर तुम बस मेल जोल करना,
हर आदमी को यह ही मनतर सिखाए होली।
चालाकियां तो देखो दिल की नज़र से इसकी,
बरसा के रंग सब पर खुद खिलखिलाए होली।
सीमा शर्मा ‘अंशु विजया’