ग़ज़ल--होली
#मापनी – 221, 2122, 221, 2122
#काफ़िया- आए कि बंदिश
#रदीफ़ – होली
गूरूर आग में दुष्टों का जलाए होली।
हर साल जश्न ईबादत का मनाए होली।।
गहरे रहे मोहब्बत के रंग ये हमेशा,
नफरत मिटे दिलों से पैगाम लाए होली।
पल में बदल लिया करते हैं लोग रंग अपने,
आगाह ये हमें करती बीत जाए होली।
हो बरकरार जीवन में रंग ये सभी के,
रोते हुए दुखी बन्दों को हँसाए होली।
सब बैर भूल कर तुम मेलजोल करना,
दुश्मन गले लगा कर के मुस्कुराए होली।
ये वक़्त है कहे रंगों सा तुम खिलो सदा ही,
हैं रंग आज जो जाने फिर वो खिलाए होली।
रोये न आँख कोई खुशियाँ बसे दिल मे,
सीमा कहे यही बस गम को भगाए होली।
सीमा शर्मा’अंशु विजया’