Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Dec 2025 · 1 min read

गीतिका-होलिका

विषय- होलिका
गीतिका 26 मात्रा (14,12)
मापनी —2122 2122 , 2122 212

होलिका के साथ देखो, मान उसका जल गया।
जीत थी प्रह्लाद की ये, भक्ति का था युग नया।।
नाश था अभिमान का, अग्नि में
धूं धूं जला।
ब्रह्म का वरदान उसका, मौत से जाकर फला।।

प्रीत जोड़ी ईश से तो, कष्ट बालक को दिए।
मृत्यु के कितने तरीके,आजमा उस पर लिए।।
बाल तक बाँका नहीं वो, कर सका उसका पिता।
लाज श्री हरि ने रखी तब, भक्त को लाये जिता।।

पर्व है ये प्रीत का भी, रंग से तन-मन सने।
घोल लो खुशियां जरा सी, प्रेम से होली मने।।
आँख से आँसू झरे क्यों, पोंछ दो नैना भरे।
पीर को बदले खुशी में, काज कुछ ऐसा करे।।

फाग खेलो रंग भर भर, गाल सबके लाल हो।
गीत गाओ मस्त होकर, थिरकती सी चाल हो।।
संग अपनों का रहे तो, खास ये त्यौहार हो।
प्यार के सतरंग बरसे, शंभु की जयकार हो।।

सीमा शर्मा’अंशु विजया’

Loading...