#अभिव्यक्ति
#अभिव्यक्ति
■ एक कथानक, दो जीवन।
■(प्रणय प्रभात)■
कभी रातें सोने व तरो ताज़ा होने के लिए होती थीं और दिन खाने कमाने व जीवन के हर पहलू का आनंद लेने के लिए। अब दौर के साथ बदल चुके हैं जीवन के सारे तौर।
आज के ऊहा-पोह भरे जीवन की गाड़ी चलाने के लिए अब दिन-रात की दो अलग-अलग पारियों में अपनी बारी के मुताबिक़ करना पड़ता है केवल काम, काम, काम और जीवन देखते ही देखते हो जाता है तमाम।”
बस, आज की दुनिया के इसी कड़वे सच के बीच धड़कते युवा दिलों की पीड़ा और त्रासदी को मुखर करना हो तो उसका बस एक ही माध्यम है और वो माध्यम है प्रणय-वेदना से भरा एक गीत। जानदार प्रतीकों के साथ, नए प्रतिमानों से भरपूर। दो जीवन पर केंद्रित एक कथानक। शेष काम अनुभूति व अभिव्यक्ति का। सामर्थ्य लेखनी की, जहां तक भी जाए। औरों की पीड़ा या परिस्थितियों को मुखर करना सार्थक रचनाधर्म है, जिसका निर्वाह किया जाना चाहिए और किया भी जा रहा है।
बस, ऐसे ही कथानक पर केंद्रित है मेरा एक ऐसा गीत जो अस्तित्व पाने के बाद आप जैसे सुधि मित्रों को जीवन की आपाधापी में दम तोड़ते जज़्बातों से परिचित कराएगा। साथ ही अर्थयुग का शिकार उस नई पीढ़ी की पीड़ा का बयान करेगा जो कुछ पा लेने की चाह में सब कुछ खो कर खुश है। आने वाले कल की तन्हाई से बेपरवाह। कोशिश है कि आज एक अनूठे व मार्मिक गीत के माध्यम से आपके संवेदी मन को मनन पर बाध्य कर पाऊं।
ऐसे एक गीत के लिए ज़रूरी हैं भावों के अनुरूप बिम्ब और प्रतिमान। जिसे लेकर एक प्रयोगधर्मी गीतकार के तौर पर मैं सदैव कल्पनारत रहता हूँ। आज भी हूँ, इस एक अनूठे गीत के साथ।मन हो तो मन से ही पढ़िएगा। रात की तन्हाई को सिरहाने लगा कर। उन दिनों को ज़हन में रख कर, जब हम भी जवान थे। तमाम पाबंदियों के बावजूद इस तरह की मजबूरियों से कोसों दूर। कुछ महसूस कर पाएं तो मुझे भी बताएं, लेकिन संजीदगी के साथ। शुक्रिया दिल से, आपकी इनायतों व नवाज़िशों के नाम। अब पढ़िए एक नई रचना।
■ रातरानी और सूरजमुखी…
◆ आँसुओं की जुबानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।
एक होता था सूरजमुखी,
एक थी रात-रानी सुनो।।
◆ एक दिन का शहंशाह था, एक थी मल्लिका रात की।
देख लेते थे आपस में पर, थी न मोहलत मुलाक़ात की।
थी मचलती जवानी सुनो। प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ एक पर धूप सा रूप तो, एक पर चाँदनी सी चमक।
एक पर खुशनुमा रंगतें, एक पर मदभरी सी महक।
रुत थी सच में सुहानी सुनो। प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ इसका यौवन था दिन पर टिका, उसकी उम्मीद थी रात पर।
थी इधर जागती बेबसी, तो उधर करवटें रात भर।
हो न पाए रुमानी सुनो। प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ दिन महीने गुज़रते गए, हाल हद तक हठीले हुए।
हाथ हल्दी नहीं लग सकी, पात दोनों के पीले हुए।
अब थी दुनिया विरानी सुनो। प्रेम की है कहानी सुनो।।’
संपादक
न्यूज़&व्यूज
(मध्यप्रदेश)
Insaf Qureshi
Manju Rastogi Sawarnkar
रेखा कापसे माँडवे
Anita Chamoli