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6 Dec 2025 · 2 min read

एक रात के चमक-धमक...

लाइन से लागल बा भाई कइ-कइ गो जनरेटर
झालर, झूमर, चकमक-चकमक, पियले बा अपरेटर

जगमग-जगमग द्वार करत बा, टोला अउर मुहल्ला
नर-नारी लो कमर हिलावत बाटे खुल्लमखुल्ला

लागे जइसे जान मार दी डी जे के स्पीकर
नाचत बा लो उरउ-घुरहू, जुल्फीदार फटीचर

बेटहा ले के आइल बाटे आर्केस्ट्रा दमदारे
बारातिन के गिनती से तऽ बेसी बाटे कारे

बिन परदा के गाना सुनि के माथा लागे फाटे
सबके नीके लागत होई के केकरा के डाटे

रार करे आइल बाड़ेसन बाहर से खुरफाती
झूठे नू बदनाम भइल बा सूखल का के नाती

खूब पटाखा छोड़ल जाता, आकासी, बमबोला
खूब बड़ाई छीलत बाटे, गाँव-नगर आ टोला

कर्जा लेके डी जे होता, खेत बेंच के साटा
एक रात के चमक-धमक आ फेर उहे सन्नाटा

लउकेक चाहीं हार चमाचम कंगन अउरी काड़ा
फैशन से अब भागि गइल बा कई कोस ले जाड़ा

दुलहिन के चेहरा के मेकअप लागल जइसे पुट्टी
कई किलो साबुन लागी तब जा के कइसो छूटी

कीनत में माथा चकराइल दिन में लउकल तारा
चऽलल मुश्किल कइले बाटे घाघर अउर शरारा

बेचे वालन के चाँनी बा केकर बाटे घाटा
एक रात के चमक-धमक आ फेर उहे सन्नाटा

रस में डूबल नाचत बाटे, राजभोग, रसगुल्ला
छप्पन भोग बनल बा लोगवा करे दूध के कुल्ला

किसिम किसिम के व्यंजन बाटे बनऽल कर्जा लेके
मर्जी जेतना लोग परोसे कुछ खाला कुछ फेके

कुकुर सब के भीड़ लगेला पत्तल जहाँ फेकाला
बहुत लोग अइसनको होई बिन खइले सुति जाला

समझदार ऊहे बाटे जे समझ बूझ अपनावे
जहाँ जरूरत होखे आपन पइसा उहाँ लगावे

काहें खुद के हाँथे लोगवा मारे खुद के चाटा
एक रात के चमक-धमक आ फेर उहे सन्नाटा

कविता- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 04/12/2025

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