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5 Dec 2025 · 1 min read

माय

बात कहै छी जीवन के हम,
ध्यान सं सुनिहक हौ भाय।
एहि जग में सब सं बढ़िकय
जे होइ छै जन्मदातृ—माय।

पहिल धड़कन, पहिल स्वरूप,
जे छूबै छै करुणा के कंठ।
माय के कोरा—शांति के सागर,
जहि में बहै प्रेम के संत।

नापि सकै नै कोनो माप सं
मायक निर्मल सन ममता।
मायक तुल्य कियो भ’ सकय—
से जग में नै छै ककरो क्षमता।

ओ त’ जागै छै राति-राति भरि
हमर सासो के गिनि-गिनि के।
ओ ममता के दीप जरबैत
हमरा राखै अप्पन छाँह में।

हमरा पहिल डेग के सहारा,
हमरा पहिल अक्षर के ज्ञान।
हमरा संगी, हमरा सहारा,
हमरा जीवनक भगवान।

माय केवल नाम नै हौ,
ओ त’ एक गूढ़ उपासना छी।
जत’ ने अर्घ्य, ने मंत्र चाही—
सिर्फ समर्पण के भावना छी।

ओ करजा छै अनगिनत जनमक,
जाहि के चुकाबी नै सकै।
ओ स्पर्श छै आत्मा सन निर्मल—
जे बिना कहने सब बुझि सकै।

जे माय नहिं बुझलक, से की जानत
प्रेम, त्याग, आ अपनपन के भाव?
माय सं शुरू, माय में अंत,
ओकरे नाम जीवनक नाव।

तेँ हाथ जोड़ि नमन करै छी,
मायक रूप में ईश्वर के पहिचान।
धरती पर जे स्वर्ग देखै छै—
ओ माय के कोरा के जान।
~© N Mandal – एन मंडल

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