ग़ज़ल 1222 1222 1222 1222
ग़ज़ल 1222 1222 1222 1222
बुलंदी से तो गिर कर अच्छे अच्छे टूट जाते हैं,
मिले गर जुगनुओं से तो अंधेरे टूट जाते हैं।
समंदर की ख़िलाफ़त से किनारे टूट जाते हैं,
हवाओं के भड़कने से सफीने टूट जाते हैं।
तुम्हारे प्यार में तन्हाई का उन्माद छाया है,
मुहब्बत की दुकानों के भी पल्ले टूट जाते हैं।
पहाड़ों की चढ़ाई में कोई मुश्किल नहीं आती,
उतरते वक़्त पैरों के जूते टूट जाते हैं।
कुवांरे पन में रिश्ता अपनों से होता बहुत गहरा,
हुई शादी तो तो माज़ी से रिश्ते टूट जाते हैं।
सियासत के विचारों में समझदारी नहीं होती,
सियासत के ग़ुनाहों से मुहल्ले टूट जाते हैं ।
पढ़ाई के लिए बच्चों पे ढाओ ना सितम दानी
जियादा गर तराशो तो नगीने टूट जाते हैं।
( डॉ संजय दानी दुर्ग सर्वाधिकार सुरक्षित )