ना तुम्हारी ज़रूरत, ना तुम्हारी कहानी,
ना तुम्हारी ज़रूरत, ना तुम्हारी कहानी,
मेरी अपनी दुनिया है, मेरी अपनी ज़ुबानी।
अब एक ही अल्फ़ाज़ में समझ लो बात,
तुम हद में रहो, वरना भूल जाना अपनी औक़ात।
कवि शाज़
ना तुम्हारी ज़रूरत, ना तुम्हारी कहानी,
मेरी अपनी दुनिया है, मेरी अपनी ज़ुबानी।
अब एक ही अल्फ़ाज़ में समझ लो बात,
तुम हद में रहो, वरना भूल जाना अपनी औक़ात।
कवि शाज़