जीसस क्राइस्ट। ~ रविकेश झा।
जीवन में अभी जीवंत होने के लिए बुद्ध पुरुष के सत्संग में आना चाहिए, हमें पूर्ण समर्पण करना चाहिए ताकि हम भी उठ सकें जाग सकें। हमारे जीवन में भी ध्यान, आनंद की वर्षा हो सकती है, बस हमें स्वयं के प्रति जागरूक और समर्पित रहना होगा। कृतज्ञता प्रकट करना होगा परमात्मा में श्रद्धा रखना होगा ताकि जीवन में हम भी पूर्णता प्राप्त करे। लोग आज कल बाहर के दुनियां में खोए हुए हैं जागा हुआ कोई नहीं है सब मूर्छा में है। पता ही नहीं चलता कि कैसे हम जी रहे हैं। कर्तव्य को हम स्वभाव समझ लेते हैं इसलिए थोड़ा शांत भी होते हैं लेकिन हमेशा नहीं लीजेंड थॉट को अपनाकर कर्म को स्वभाव मान लेते हैं। हम स्वयं को नहीं जान पाते इसीलिए कभी खुशी तो कभी गम में खो जाते हैं कभी क्रोध कभी करुणा कामना के हिसाब से मन बदलता रहता है। आंख में जो अपना दिखा अपने ओर आ रहा है या स्थापित हो गया है फिर हम खुश रहेंगे, अगर आंख से कोई वस्तु दूर होते दिखाई देता है फिर हम क्रोध से भर जाते हैं। अगर साहसी हैं तो लड़ेंगे नहीं तो दुखी होंगे अकेले में क्रोध आए लेकिन शक्ति न होने के कारण हम झुक जाते हैं रोते रहते हैं। ऐसे में जीवन चलती रहती है हम भी कैसे भी जीते रहते हैं। मन भरता नहीं संतुष्टि नहीं मिलती संतुष्टि जिसे मिलेगा वो दृष्टि को बाहर रखा है भीतर के ओर आंख नहीं कौन चाह रहा है कौन मांग कर रहा है किसको चाहिए कौन एक कामना को पूर्ण होते ही थोड़े देर के लिए शांत हो जाता है खुशी में शामिल हो जाते हैं। इन्द्रियां मन शरीर वही है ऊर्जा कहां ले जाना है ये हम पर निर्भर है लेकिन अभी हम मन पर छोड़ दिए हैं स्वयं मालिक नहीं बने हैं। स्वयं मालिक हो जायेंगे तो शांत रहेंगे स्वामी होंगे स्वामी का अर्थ है सब कुछ देख लिए जान लिए सभी इन्द्रियां मन से परिचित हो गए। अब स्वामी हो जाए मालिक हो गए ब्रह्मांड देख लिए ब्रह्मांड को चलाने वाले को देख लिए द्रष्टा को देख लिए अब शांत रहेंगे स्वामी मालिक रहेंगे। एक समय में हम एक इन्द्रियां में रह सकते हैं जैसे पृथ्वी सूर्य चंद्रमा परिक्रमा करते हैं वैसे हम भीतर से हैं हम भी परिक्रमा करते हैं लेकिन हम बाहर अधिक रहते हैं इसलिए हमें पता नहीं चलता साहब।
हमें स्वयं के प्रति जागरूक रहने की आवश्यकता है तभी हम स्वयं से पूर्ण अवगत होंगे धैर्य विनम्र विवेक को जागृत करके शांति में शामिल होंगे। सब कुछ देख लेने के बाद शांत चित्त परमात्मा दिखेंगे अगर जागरूकता से ध्यान करते रहे तब नहीं तो बाहर ही रहेंगे और कुछ हाथ नहीं लगेगा। अगर हमें शांत होना है जागृत रहना शरीर मन आत्मा से पूर्ण परिचित होना है फिर हमें समर्पण दिखाना होगा। पूरे पृथ्वी पर इतने बुद्ध पुरुष महा पुरुष जन्म लिए हैं जो अपने शिक्षाएं से हमें जीवंत बना दिए सूत्र दिए जगाए बहुत कुछ दिए, जिसे शब्दों में लिखना उचित नहीं होगा। कोई आधुनिक शिक्षा से समाज को जगाया कोई धर्म के माध्यम से कोई योद्धा के रूप में साम्राज्य को स्थापित किए जहां प्रेम करुणा शिक्षा ध्यान विज्ञान पर ध्यान केंद्रित किए। हमारे जीवन में स्पष्टता आए इसके लिए बुद्ध पुरुष ने अपना बलिदान दे दिए, चाहे वो बुद्ध हो चाहे गांधी चाहे सुकरात चाहे मंसूर चाहे जीसस चाहे अन्य महा पुरुष।
आज हम बात कर रहे हैं जीसस क्राइस्ट के बारे में। नाज़रेथ के जीसस इंसानी इतिहास के सबसे असरदार लोगों में से एक हैं। उनकी शिक्षाओं और ज़िंदगी ने इतिहास को दिशा दी है और दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरणा देते हैं। ईसाई धर्म के मुख्य व्यक्ति के तौर पर जाने वाले, जीसस का प्रेम दया और क्षमा का संदेश सभी संस्कृतियों और पीढ़ियों ने गूंजता है। जीसस का जन्म 25 दिसंबर को लगभग 4 BC में जुडिया के एक छोटे से शहर बेथलहम में हुआ था। उनकी मां, मैरी और उनके पिता जोसेफ पक्के यहूदी थे जिन्होंने जीसस को नाज़रेथ में पाला था। यहूदी धर्म अब्राहम से जुड़ा है बाद में बात करेंगे। उनके जन्म की कहानी को हर साल क्रिसमस के तौर पर मनाया जाता है, जो ईसाई कैलेंडर की सबसे खास घटनाओं में से एक है। जीसस के शुरुआती सालों के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन माना जाता है कि उन्होंने जोसेफ के साथ बढ़ई का काम किया था। उनकी जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने लगभग 30 वर्ष की उम्र में अपनी पब्लिक मिनिस्ट्री शुरू की। जीसस की मिनिस्ट्री लगभग तीन साल तक चली, इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षाएं शेयर करते हुए जुडिया और गैलिली में यात्रा की। उनका संदेश प्यार, पछतावा और परमेश्वर के राज्य के आस पास था। गहरी आध्यात्मिक सच्चाई बताने के लिए वे अक्सर छोटी कहानियों का इस्तेमाल करते थे, जिसे हम नैतिक शिक्षा कह सकते हैं। यीशु की कुछ खास शिक्षाओं में पहाड़ पर उपदेश शामिल है, जहां उन्होंने बिटीट्यूड शुरुआत की, जिसमें विनम्रता, दया और नेकी पर ज़ोर दिया गया। उनकी शिक्षाओं ने उस समय के सामाजिक और धार्मिक नियमों को चुनौती दी, और दूसरों के प्रति दया और सेवा से भरे जीवन की वकालत की।
यीशु को कई चमत्कार करने के लिए भी जाना जाता है, जो उनके ईश्वरीय अधिकार के संकेत थे। इन चमत्कारों ने केवल उनकी दया दिखाई बल्कि उम्मीद और विश्वास के उनके संदेश को भी मज़बूत किया। यीशु के जीवन और शिक्षाओं का असर बहुत गहरा था, जिसने अलग अलग तरह के लोगों को अपनी ओर खींचा। उनका संदेश हर तरह के लोगों तक पहुंचा, जिससे विश्वास और आध्यात्मिकता पर एक नया दृष्टिकोण मिला। प्रेम और शांति की अपनी शिक्षाओं के बाबजूद, जीसस को धार्मिक नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा और आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें रोमन अधिकारियों के तहत सूली पर चढ़ाया गया, जो ईसाई धर्म की शिक्षाएं में एक अहम घटना थी। ईसाई मानते हैं कि अपने मौत से, जीसस ने इंसानियत के पापों से छुटकारा दिलाया। जीसस की कहानी उनके सूली पर चढ़ाए जाने के साथ खत्म नहीं होती। ईसाई मान्यता के अनुसार, वह तीन दिन बाद मरे हुओं में से जी उठे, इस घटना को ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। फिर से जी उठने को पाप और मौत पर जीत के रूप में देखा जाता है, जो मानने वालों को हमेशा ज़िंदगी जीने की उम्मीद देता है। जीसस की विरासत कला और संस्कृति से लेकर नैतिकता और कानून तक, समाज के अनगिनत पहलुओं पर असर डालती है। उनकी शिक्षा ने सामाजिक न्याय के लिए आंदोलनों को प्रेरित किया है और कई लोगों के लिए आराम और मार्गदर्शन का ज़रिया रही हैं।
ईसाई धर्म, जो जीसस की शिक्षाओं पर आधारित धर्म है, दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है, जिसके दुनिया भर में अरबों फॉलोअर्स हैं। प्रेम और क्षमा का मुख्य संदेश आज गूंजता रहता है, जो उम्मीद और एकता का नज़रिया देता है। ईसाई धर्म में, जीसस क्राइस्ट का बहुत बड़ा महत्व है। उन्हें न सिर्फ़ एक ऐतिहासिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है, बल्कि ईश्वर के पुत्र और इंसानियत के उद्धारकर्ता के तौर पर देखा जाता है। ईसाई मानते हैं कि जीसस के जीवन, शिक्षाओं, मृत और फिर से जी उठने से वे ईश्वर के स्वभाव और मुक्ति के रास्ते को समझ सकते हैं।
ईसाई विश्वास का मुख्य विचार यह है कि जीसस पूरी तरह से इंसान और पूरी तरह से ईश्वरीय थे। यह दोहरा स्वभाव मानने वालों को उनसे पर्सनल केवल पर जुड़ने, उनके इंसानी अनुभवों को समझने और साथ ही उनके ईश्वरीय गुणों का आदर करने की अनुमति देता है। जीसस की शिक्षा ईसाई नैतिकता और नैतिकता की नींव हैं। उनके प्रेम दया क्षमा और विनम्रता के संदेश बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट में शामिल हैं। कहानियों और उपदेशों, जैसे कि सरमन ऑन द माउंट के द्वारा, जीसस ने ईश्वर के राज्य के बारे में सिखाया, और सिर्फ़ रस्मों रिवाजों के बजाय अंदरूनी बदलाव पर ज़ोर दिया। मुख्य शिक्षा में से एक है गोल्डन रूल, दूसरों के साथ वैसा ही करो जैसा तुम चाहते हो कि वे तुम्हारा साथ करें। यह सिद्धांत हमदर्दी और भलाई को बढ़ावा देता है, और ईसाइयों को दूसरों के साथ बातचीत में गाइड करता है। ईसाई धर्म में यीशु का सूली पर चढ़ाया जाना एक अहम घटना है। ईसाई मानते हैं कि सूली पर अपनी मौत के ज़रिए, यीशु ने इंसानियत के पापों का प्रायश्चित किया, और मुक्ति और हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता दिखाया। बलिदान के इस काम को इंसानियत के लिए भगवान के प्यार का सबसे बड़ा सबूत माना जाता है। कई ईसाइयों के लिए, सूली पर चढ़ाया जाना पाप की हार और भगवान और इंसानियत के बीच
एक नए वादे की शुरुआत को दिखाता है। इसे हर साल गुड फ्राइडे को मनाया जाता है, जो सोचने और शुक्रगुज़ार होने का दिन है।
यीशु के फिर से जी उठने को ईसाई धर्म की नींव के तौर पर मनाया जाता है। बाइबिल के अनुसार, यीशु सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद मरे हुओं में से जी उठे, जो मौत पर उनकी जीत और मानने वालों के लिए हमेशा की ज़िंदगी के वादे को दिखाता है। यह इवेंट ईस्टर संडे को मनाया जाता है, जो क्रिश्चियन कैलेंडर के सबसे खुशी के मौकों में से एक है। फिर से ज़िंदा होना उम्मीद और नई जान आने का एक मज़बूत निशान है, जो मौत के बाद ज़िंदगी में यकीन और मुश्किलों से उबरने के लिए भरोसे की ताकत के मज़बूत किया। क्रिश्चियन के लिए, जीसस सिर्फ़ एक ऐतिहासिक हस्ती से कहीं ज़्यादा हैं वे भरोसे और नेकी की ज़िंदगी जीने के लिए एक मॉडल हैं। उनकी विनम्रता सेवा और बिना शर्त के प्रेम की मिसाल लाखों लोगों को उनकी शिक्षाएं को दिखाने वाली ज़िंदगी जीने के लिए प्रेरित करती है। प्राथना, पूजा और कम्युनिटी सर्विस के ज़रिए क्रिश्चियन जीसस की ज़िंदगी को अपनाना चाहते हैं, जिसका मकसद अपने कम्युनिटी और पूरी दुनिया में अच्छा असर डालना है। जीसस का असर धार्मिक दायरों से कहीं आगे तक फैला हुआ है। उनकी शिक्षा ने वेस्टर्न सभ्यता को बनाया है और सभी बैकग्राउंड के लोगों को प्रेरित करती रहती हैं। कला और साहित्य के लेकर कानून और नैतिकता तक, जीसस के संदेश का असर समाज के अलग अलग पहलुओं में साफ़ दिखता है।
जैसे जैसे यीशु का असर बढ़ा, वैसे वैसे धार्मिक नेताओं का विरोध भी बढ़ता गया, जिन्हें उनकी शिक्षाओं से खतरा महसूस होता है। उन्होंने उन्हें अपने अधिकार के लिए एक चुनौती के रूप में देखा और उन्हें कमज़ोर करने के तरीके खोजे। आखिरकार, जीसस को उनके ही एक चेले जुडस इस्कैरियट ने धोका दिया, जिसके कारण रोमन अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से उनकी धरती पर सेवा के अंत की शुरुआत हुई। जीसस पर मुकदमा चला और उन्हें सूली पर चढ़कर मौत की सज़ा सुनाई गई, जो रोमन साम्राज्य में मौत की सज़ा देना एक आम तरीका था। उन्हें यरूशलेम की दीवारों के बाहर गोलगोथा में सूली पर चढ़ाया गया था, इस घटना को ईसाई गुड फ्राइडे के दिन मानते हैं।
यहूदी और ईसाई धर्म के बीच मुख्य अंतर यह है कि ईसाई मानते हैं कि यीशु मसीहा (मसीहा) हैं, जबकि यहूदी ऐसा नहीं मानते हैं। ईसाई धर्म एक त्रिगुणात्मक ईश्वर में विश्वास करता है (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा), जबकि यहूदी धर्म ईश्वर की एकता पर जोर देता है और ईश्वर के मनुष्य के रूप में अवतार को खारिज करता है। ईसाई मानते हैं कि यीशु ने मानवजाति के पापों के लिए बलिदान दिया और उसके माध्यम से अनन्त जीवन का मार्ग दिखाया।
यहूदी धर्म एकेश्वरवादी है और ईश्वर की एकता पर जोर देता है। ईसाई धर्म त्रिगुणात्मक ईश्वर में विश्वास करता है (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा)। यहूदी यीशु को ईश्वर का पुत्र या मसीहा नहीं मानते हैं। ईसाई मानते हैं कि यीशु ईश्वर के पुत्र और मसीहा हैं। यहूदी मानते हैं कि मसीहा एक सामान्य मानव होगा जो इस्राएल को भौतिक रूप से फिर से स्थापित करेगा और दुनिया में शांति लाएगा। ईसाई मानते हैं कि यीशु ने पहले ही यह भूमिका निभाई है, और उनके अनुयायी विश्वास के माध्यम से ईश्वर के साथ एक नए रिश्ते में प्रवेश करते हैं। मोक्ष ईश्वर और अब्राहम के बीच वाचा के माध्यम से होता है, जैसा कि इब्रानी बाइबिल में दर्ज है। ईसाई मानते हैं कि यीशु के बलिदान के माध्यम से पापों की कीमत चुकाई जाती है और विश्वास के माध्यम से अनन्त जीवन मिलता है। पुस्तक शास्त्र, इब्रानी बाइबिल (ओल्ड टेस्टामेंट)। बाइबिल (पुराना और नया नियम दोनों शामिल हैं)।
ओशो कहते हैं।
वास्तव में जीसस क्रॉस पर नहीं मरे। एक व्यक्ति को यहूदी क्रॉस पर मरने के लिए कम से कम अड़तालीस घंटे लगते हैं; और कुछ ज्ञात मामले हुए हैं जहाँ लोग अपने क्रॉस पर छह दिनों तक भी बिना मरे रह गए हैं। क्योंकि जीसस को छह घंटे बाद ही क्रॉस पर से उतार लिया गया था, इसकी संभावना नहीं है कि उन्होंने क्रॉस पर जान दी होगी। जीसस के प्रति सहानुभूति रखने वाले एक अमीर आदमी और पोंटियस पायलट ने आपस में साजिश रची थी कि जीसस को शुक्रवार के दिन जितना हो सके देर से देर सूली पर चढ़ाया जाए–क्योंकि शनिवार के दिन, यहूदी सब बंद कर देते हैं; उनके सब्त का दिन उन्हें किसी तरह के कृत्यों की अनुमति नहीं देता। शुक्रवार की श्याम तक सब समाप्त हो जाता है।
व्यवस्था यह थी कि जीसस को दोपहर देर से सूली पर चढ़ाया जाएगा, ताकि सूरज ढलने से पहले उन्हें उतार लिया जाएगा। शरीर से बहुत ज्यादा खून बह जाने के कारण वे बेहोश हो गए होंगे परंतु वे मरे नहीं थे। फिर उन्हें एक गुफा में रखा जाएगा, और इससे पहले कि सब्त का दिन समाप्त हो और यहूदी उन्हें फिर से सूली पर चढ़ा दें, उनका शरीर उनके अनुयाइयो द्वारा चुरा लिया जाएगा। गुम्बद खली पाया गया, जीसस को जुडिया से जितनी जल्दी हो सका हटा दिए गया। जब वे फिर से स्वस्थ हो गए, वे भारत चले गए और एक लंबा जीवन व्यतीत किया–एक सौ बारह वर्ष–काश्मीर में।
जीसस एक पूर्ण संबुंद्ध आत्मा थे। जहाँ तक ईसाई सिद्धांत का संबंद्ध है, पुनर्जीवन की घटना कल्पना से परे दिखती है, परंतु योग के लिए नहीं। योग की मान्यता है —और इसके बहुत से उदाहरण हैं—कि एक व्यक्ति बिना मरे पूर्ण रूप से मर सकता है। ह्रदय की धड़कन बंद हो जाती है, नब्ज़ बंद हो जाती है, श्वास बंद हो जाती है — यहाँ तक की योग में ऐसी विधियां हैं जो इसका शिक्षण देती हैं। भारत में हमें पता है कि जब जीसस को सूली पर चड़ाया होगा तब उन्होंने अवश्य कोई गहरी योगिक क्रियाओं का अभ्यास किया होगा क्योंकि यदि शरीर जब वास्तव में मरता है तो उसके पुनर्जीवित होने की सम्भावना नहीं होती।
जब जिन लोगों ने उन्हें सूली पर चड़ाया, उन्होंने अनुभव किया कि वे मर गए थे, तब उनका शरीर सूली पर से नीचे उतार कर उनके अनुयायों को दे दिया। उसके उपरान्त, उनके शरीर को एक पतले मलमल और मरहम में बाँध कर, जो आज तक “जीसस की मरहम” के नाम से जानी जाती है, उनके दो अनुयायों, जोसफ और निकोडेमस ने उनके शरीर को एक गुफा में पहुंच दिया, जिसके मुंह को एक बड़े पत्थर से बंद कर दिया।
एक सम्प्रदाय है, ऐसेंस, जिसकी इस बारे में अपनी परंपरा है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसेंस अनुयाइयों ने जीसस की उनके घांवों से उभरने में मदद की। जब उन्हें दोबारा देखा गया तो उनके अनुयाइयों को भरोसा ना आया कि ये वही जीसस हैं जिन्हें सूली दी गई थी, एक ही तरीका था–और यह बाइबल में उल्लेखित है–कि उनके भरे हुए घाव उन्हें दिखाएं जाएं। यह घाव ऐसेंस ने ठीक किये थे, और ये घाव उन तीन दिनों के दौरान ठीक हुए जब जीसस गुफा में उस परीक्षा से उबर रहे थे। फिर, जब उनके घाव भर गए, वे गायब हो गए। गुफा के मुंह से वह विशाल पत्थर हटा दिया गया था और गुफा खाली पाई गई।
जीसस वहां नहीं थे! जीसस का यूं गुफा में से लापता हो जाना उनके पुनर्जीवित होने और स्वर्ग की ओर आरोहण करने के सामान्य सिद्धांत के प्रचलित होनेका कारण है।
किन्तु अपने अनुयायों को अपने दर्शन देने के बाद उन्हें उस देश से गायब हो जाना पड़ा, क्योंकि यदि वे वहां रह जाते तो उन्हें फिर से सूली पर चड़ा दिया जाता। वे भारत चले गए जहाँ पर एक परम्परा के अनुसार, यहूदियों की एक जाती विलुप्त हो गई थी।
प्रसिद्द इतिहासकार, बर्नियर ने, जो औरंगज़ेब के राज्य समय में भारत आया था, लिखा: “राज्य में प्रवेश करने पर ‘पीर पंजल पास’ पार करने के बाद, मुझे सीमा के पास वाले गांव वासियों में यहूदीयों जैसी समन्ता दिखी।”
हाँ, काश्मीरी सच में यहूदी जैसे दीखते हैं, उनके चेहरे में, अपने हर हाव-भाव में । काश्मीर में तुम जहां भी घूमोंगे, तुम महसूस करोगे कि तुम किसी यहूदी धरती पर घूम रहे हो। ऐसा सोचा जाता है कि जीसस काश्मीर इसलिए आये क्योंकि वह भारत में एक यहूदी धरती थी–यहूदियों का एक कबीला वहां रह रही था। काश्मीर में जीसस के बारे में बहुत सी कहानियां हैं, किन्तु जिसे उन्हें खोजना हो उसे वहां जाना होगा।
सूली लगने से जीसस का मन पूर्णता बदल गया था। उसके बाद से, वे सत्तर वर्ष लगातार भारत में रहे, पूर्ण मौन में–अज्ञात, गुप्त । वे पैगम्बर नहीं थे, वे कोई नेता नहीं थे, वे कोई उपदेशक नहीं थे। इसीलिए उनके बारे में ज्यादा कुछ खबर नहीं है।
ईसाइयत बहुत अभाव में है। जीसस को लेकर भी वह बहुत अभाव में है। उनके पूरे जीवन की कोई खबर नहीं है: उन्होंने क्या अभ्यास किया, उन्होंने कैसे ध्यान साधना की इसके बारे में कुछ नहीं पता। ईसाई प्रचारक जिन्होंने उनकी कही हुई बातों का लेखा जोखा रखा, वे अशिक्षित थे: उन लोगों को ज्यादा कुछ पता नहीं था। एक मछुआरा था, दूसरा बढ़ई था। सभी बारह प्रचारक अशिक्षित थे।
प्रचारक समझ नहीं पाए कि जीसस जब पहाड़ियों पर गए और चालीस दिनों के लिए मौन रहे तब वे क्या कर रहे थे। उन्होंने बस उस घटना को दर्ज कर लिया और यह भी कि जब वे दौबारा लौट कर आए, उन्होंने उपदेश देने शुरू कर दिए। पर वे वहां कर क्या रहे थे? इस बारे में कुछ नहीं पता–कुछ भी नहीं।
ईसाइयत में रोगग्रस्त होने की एक लंबी परंपरा है। ईसाइ कहते हैं जीसस कभी हंसे नहीं। अब यह कोरी बकवास है! मैं तुम से कहता हूँ कि क्राइस्ट अपने पूरे जीवन भर हंसते रहे; केवल वे ही हंस सकते हैं। और कौन हंसेगा? लेकिन ईसाई कहते हैं वे कभी हंसे नहीं। वे उन्हें उदास दिखाना चाहते हैं, बोझ से दबे हुए। वे अपनी उदासी जीसस पर मढ़ रहें हैं, वे अपने दुःख जीसस पर मढ़रहे हैं। जीसस एक पर्दा बन गए और तुम उन पर अपना मन फेंकते जा रहे हो। जीसस हंसे, मौज में रहे, और प्रेम किया। यदि तुम बिना किसी पक्षपात के गोस्पेल्स में ढूँढोगे तो, तो तुम यह पाओगे। तुम एक व्यक्ति के बारें में अन्यथा कैसे सोच सकते हो जो मौज-मस्ती करता था, अच्छा खाता-पीता था, स्त्रिओं के साथ घूमता था, और मदिरापान करता था–हाँ, वाइन उनके लिए अन्जान वस्तु नहीं थी, उन्हें वह बेहद पसंद थी। वे एक बहुत-बहुत प्रसन्नचित व्यक्ति थे। एक व्यक्ति जो मदिरापान करे, अच्छा खाता हो, जो भोजन में रस ले, जिसे मित्रों से प्रेम हो– यह कल्पना करना भी कठिन है कि वे कभी हँसे ना हों। परंतु ईसाईयों ने जीसस को अपने प्रक्षेपण के अनुसार चित्रित किया है। और वह प्रक्षेपण उन के खुद के दुःख का है। और तब जीसस केवल उदास होने के लिए, दुखी होने के लिए बहाना बन जातें हैं। इसी कारण गिरिजाघरों में कोई हंसी नहीं है, कोई ख़ुशी, कोई उत्सव नहीं ।
गिरिजाघर एक कब्रिस्तान बन गए हैं। और यह अकस्मात् नहीं है कि क्रॉस उसका प्रतीक बन गया है। उसको प्रतीक नहीं होना चाहिए।
मैं तुम्हारी कठिनाइयों समझ सकता हूँ, खासतौर पर चिन्तना की उलझने। वह कहती है: “मैं उस जीसस का क्या करूँ जिसे मैंने बहुत समय तक जाना और प्रेम किया?”
तुमने जीसस को जाना नहीं है।
मेरे द्वारा जीसस को जानने की संभावना है। यदि तुम्हारे पास पर्याप्त साहस है, तुम जीसस को पहली बार जान सकते हो। क्योंकि तुम जीसस को एक ऐसे व्यक्ति के द्वारा ही जान सकते हो जो जीसस के चैतन्य को प्राप्त कर चुका हो। कृष्ण को उसी व्यक्ति के द्वारा जाना जा सकता है जो कृष्ण के चैतन्य को प्राप्त कर चुका हो। और ये सब एक ही बात है: कृष्ण-चैतन्य, क्राइस्ट-चैतन्य, बुद्ध-चैतन्य–ये सब चैतन्यता की पराकाष्ठाएं हैं।
तुम जीसस को एक पुरोहित द्वारा नहीं समझ सकते। उसने खुद नहीं जाना। उसने जीसस को पढ़ा है, उन पर सोच-विचार किया है, उनके बारे में अनुमान लगाया, उन्हें दर्शनशास्त्र का विषय बनाया। हाँ, उसके पास एक बहुत सुसंस्कृत मन है, उसे शास्त्रों पता हैं, परंतु शास्त्रों को जानने का अर्थ जीसस को जानना नहीं है। जीसस को जानने के लिए तुम्हे अपने भीतरतम की शून्यता को जानना होगा। बिना उसे जाने तुम किसी और को जीसस से परिचित नहीं करा सकते।
हमें बुद्ध पुरुष महापुरुष को स्वतंत्र होकर पढ़ना चाहिए ताकि जीवन में जीवंत हो सकें उठ सकें जाग सकें पूर्ण हो सकें। पूरे पृथ्वी पर हमें इतना बुद्ध पुरुष प्राप्त हुए हैं लेकिन हम क्षुद्र होने में लगे हुए हैं मूर्छा हुए हैं हमें जीवन को देखना चाहिए उठना चाहिए तभी हम जीवन में संतुष्टि प्रेम करुणा दया शांति शुद्ध शिक्षा ला सकते हैं। शुद्ध शिक्षा का अर्थ है जो शरीर के लिए नहीं किया गया हो जो शिक्षा शरीर मन आत्मा को जोड़ कर रखें वही शुद्ध शिक्षा पर महारथ हासिल कर सकते हैं साहब।
इतने ध्यान से पढ़ने के किए सभी को हार्दिक आभार नमन।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️😊,