प्यासा कवि के कुंडलियां
प्यासा कवि के कुंडलियां
हँसते हँसते ज़िन्दगी, उसने काटी यार।
जिसने मानी सभ्यता, समझा शिष्टाचार।।
समझा शिष्टाचार, मनुजता को अपनाया।
जी भर जीया प्यार,खुशी के गीत लुटाया।।
‘प्यासा’ चलता राह,सनातन के जो रस्ते ।
जीता हो संतुष्ट,जिन्दगी हँसते हँसते ।।
✍️ प्यासा