चलो, निरीक्षण करते हैं
व्यंग्य
चलो, निरीक्षण करते हैं
जो मजा कहीं नहीं, निरीक्षण में है। यह काम बरसों से हो रहा है। और होता रहेगा। कोई भी, कहीं भी निरीक्षण कर सकता है। किसी की कहीं भी उतार सकता है। जब कोई अफसर नन्हें मुन्ने बच्चों से 9 दूनी 18 सुनता है तो अच्छा लगता है। अच्छा लगता है, जब नेता/ मंत्री निरीक्षण करते हैं। हर नेता के पीछे भावी नेता होते हैं। उनके साथ तीन पीढ़ियां साथ चलती हैं। आज तुम करो। कल हम करेंगे निरीक्षण।
निरीक्षण क्या है? हाथ का मैल। चुटकी बजाई..पता कर लिया..कहां क्या गड़बड़ है। 9 का पहाड़ा याद नहीं, तो स्कूल फेल। डेंगू को मलेरिया बता दिया, तो अस्पताल फेल। ली होगी, आपने डिग्री? वो किस काम की? निरीक्षण में तो काम नहीं आई। जैसे बॉस को मीटिंग से, अफसर को मीटिंग से और नेता को निरीक्षण से फुर्सत नहीं मिलती। वैसे ही शिकायतों का कभी पेट नहीं भरता।
मरीज हलुआ खा रहा है। फिर भी कहेगा, पानी में दाल है। बचपन का क्या है? उसे तो तपती धूप में कहीं भी खड़ा कर दो। वह तो बना ही है..झंडियां लहराने के लिए। सरस्वती वंदना के लिए। डांस करने के लिए।
निरीक्षण में आँखें नीर चीर होती हैं। मंत्री जी, विधायक जी सब भांप जाते हैं। हर नेता सपने में प्लान बनाता है। निंद्रा रानी उनको बताती है..कल वहां जाना। निरीक्षण करना। अफसरों को फटकारना। अखबार में तभी नाम होगा। लोग जय जय करेंगे।
कनखियों से जो देखा जाय। वही निरीक्षण है। आपको कुछ नहीं आता, फिर भी निरीक्षण करो। निरीक्षण, परीक्षण और राउंड में फर्क है। राउंड पेड है। परीक्षण के भी पैसे लगते हैं। निरीक्षण ही फ्री है। निरीक्षण कभी भी, कहीं भी हो सकता है। राउंड कितने भी हो सकते है। राउंड मुख्यतया तीन जगह पाया जाता है-मतगणना, अस्पताल और खेल। बीच वाला महंगा है। डॉक्टर जितने राउंड लेगा। उसकी जेब भारी, आपकी हल्की होगी। इसलिए, मत कहो..दर्द है..!
पहले में जीते तो निरीक्षण का अधिकार मिल जाता है। तीसरे यानी खेल में, आप बारीकी समझते हैं। मान लो, आप शादी में गए। आप वहां तीनों काम करते हो- मतगणना, निरीक्षण और राउंड। कितने आए? हमसे ज्यादा आए या कम? यह मत गणना है। ( मत+गणना= मत गिनो या राय गिनाे)। फिर आप शगुन का लिफाफा दबाए निरीक्षण करते हैं। क्या है? क्या नहीं? सब कुछ खाकर राउंड लेते हैं?
ऐसे ही हमारे नेता हैं। वह तीनों काम एक साथ करते हैं। होंगी आप पर डिग्री। हमारे पास सुपर डिग्री है-निरीक्षण। हम तो पांच मिनट में भांप जाते हैं….क्या किया? क्या नहीं? क्या है? क्या नहीं? इसलिए वह सोते-जागते, उठते- बैठते, चलते- फिरते, निरीक्षण करते हैं। आलू से सोना बनाते हैं। सोने से आलू।
पाठकों! आप भी निरीक्षण किया करो। इससे नाक खुलती है। मुंह में जायका आता है। भांपना ही कला है। अनुभव है। किसी की भी पोस्ट पर जाओ। टारगेट करो। निरीक्षण करो।
वाह.. वाह! .क्या स्वाद है! लिप्टन चाय।
सूर्यकांत
28.11.2025