इंसानों की अदालतें बस फ़ैसले सुनाती हैं,
इंसानों की अदालतें बस फ़ैसले सुनाती हैं,
पर न्याय की असली राह कहीं और ले जाती है।
शब्दों का वजन बदल जाता है हालातों के साथ,
कभी सत्य हार जाता है, कभी झूठ को मिलती है बात।
न्याय के नाम पर खुली सब दुकानें हैं,
हर तरफ़ फुसफुसाहट, हर तरफ़ स्वार्थ की राहें हैं।
इंसानों से न्याय की उम्मीद रखना व्यर्थ है,
वे भी तो डर और स्वार्थ की जंजीरों में बंधे रहते हैं।
सच्चा न्याय वहीं मिलता है, जहाँ मन शांत होता है,
जहाँ ईश्वर की नजर सब पर बराबर होती है।
वही जानता है छुपा दर्द, वही पहचानता है सच्चाई,
वही देता है सही फ़ैसला, जहां न कोई अन्याय की परछाई।
इसलिए झुको मत, टूटो मत, उम्मीद की लौ जलाए रखो,
न्याय पाना है तो ईश्वर से ही मांगो।
स्वरचित,
रजनी उपाध्याय 🙏🌹