पढ़ते तो हैं बतलाया नहीं होगा
पढ़ते तो हैं बतलाया नहीं होगा
कहना था फरमाया नहीं होगा
घर में घुटती जिंदगी को यूं देख
चिड़ियों ने घर छाया नहीं होगा
दर दर छांव को ढूंढते लोगों ने
कोई भी पेड़ लगाया नहीं होगा
सब में कमियां जो ये ढूंढते है
घर में शीशा लगाया नहीं होगा
मिल तो जाते दिल एक दूजे से
आँख से आँख मिलाया नहीं होगा
डॉ राजीव “सागरी”