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25 Nov 2025 · 1 min read

“मां और समाज का सच”

“मां और समाज का सच”

“जिस घर में मां अपशगुन बन जाए, उस घर का शुभ समय कभी नहीं लौटता; मां की देह को बोझ कहने वाले अपने ही संस्कारों की लाश ढो रहे होते हैं। जब रिश्ते फायदे और फुर्सत में तोले जाने लगें, तब इंसानियत सबसे पहले मरती है—और जिस समाज में बेटे मां की मिट्टी से डरने लगें, वहाँ संवेदनाएँ नहीं, केवल स्वार्थ बसता है।”

सुनील बनारसी

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