क्या ए आई खत्म कर देगी लेखक प्रजाति ?
साहित्य लेखन का क्षेत्र बहुत व्यापक है । यह शब्द वासना से चेतना के संवाद तक फैला हुआ है । अधिकतर साहित्य सृजन संसार तथा सांसारिक व्यवहार से संबंधित जानकारी पर केंद्रित है । मुंडक उपनिषद में इस तरह के साहित्य को अपरा विद्या के अधिकार क्षेत्र में बताया गया है । अपरा विद्या अर्थात वह विद्या जो हमें संसार , व्यवहार , कर्मकांड और विभिन्न विषयों का ज्ञान देती है । यह बुद्धि , तर्क , विश्लेषण और कर्म से संबंधित है । यह मनुष्य को संस्कार , नैतिकता , धर्म और समाज में योग्य जीवन जीने की क्षमता देती है । यह पूरी तरह से वाह्य जगत से संबंधित है । बुद्धि चातुर्य , तार्किकता , विषय विश्लेषण क्षमता , शब्द समृद्धि यह ऐसे गुण हैं जो अपरा विद्या के ज्ञान को ठोस आधार देते हैं और उसे उसके उत्कर्ष तक ले जाते हैं । अपरा साहित्य लेखन मुख्यतः दो बिंदुओं पर केंद्रित रहता है – यह संसार कैसा है और इस संसार को कैसा होना चाहिए । अपरा साहित्य लेखक या तो संसार का छिद्रान्वेषण करता है और उसकी कमियों पर प्रकाश डालता है या फिर वह अति आदर्शवादिता की ओर उन्मुख रहता है और संसार में निरंतर सुधार के लिए चेष्टाशील रहता है ।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( ए आई ) के वर्तमान दौर में अपरा साहित्य लेखन अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है क्योंकि जैसी जानकारी और जैसा सृजन अपरा लेखक कई वर्षों में करता है उसी तरह का सृजन एआई मिनटों में कर देता है । अब ए आई विषय आधारित गद्य पद्य साहित्य का सृजन करने में समर्थ और सक्षम है । शोधकर्ता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अलावा आर्टिफिशियल इमोशंस पर भी शोध कार्य कर रहे हैं । संभव है निकट भविष्य में कृत्रिम रूप से होने वाले साहित्यि सृजन में भावनाएं प्रमुखता से उभर कर सामने आएं और वह मानवीय संवेदनाओं का स्थान ले लें ।
ऐसे में प्रश्न उठता है – क्या भविष्य में साहित्य लेखन पूरी तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कृत्रिम भावनाओं के हवाले हो जाएगा और उसमें मनुष्यों का कोई योगदान नहीं रहेगा ? इस प्रश्न का उत्तर है – नहीं , ऐसा नहीं होगा । ए आई केवल अपरा विद्या के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता है , परा विद्या के क्षेत्र में नहीं । परा विद्या का तात्पर्य है आंतरिक ज्ञान यानी अनुभव आधारित ज्ञान। यूं तो परा विद्या के अंतर्गत ब्रह्म , आत्मा , परमसत्य , मोक्ष , कैवल्य जैसे विषय आते हैं , लेकिन इसके अतिरिक्त भी मनुष्य अपनी जीवन यात्रा में जिस तरह के अनुभव प्राप्त करता है अथवा उसे इस क्रम में जो आत्मज्ञान प्राप्त होता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उसे कभी भी व्यक्त नहीं कर सकता। परा विद्या हमें जीवन को देखने , समझने और इसे जीने का उत्कृष्टतम दृष्टिकोण प्रदान करती है । जीवात्मा और परमात्मा की समझ के साथ-साथ परा विद्या हमारे जीवन में दुख, तनाव और भय से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है । परा विद्या ज्ञान, विवेक , वैराग्य और आत्म चिंतन की ओर उन्मुख करती है जिससे हमें अपने अशांत मन को स्थिर और शांत रखने में मदद मिलती है । परा विद्या ही हमें यह बोध कराती है की सांसारिक सफलता ही सब कुछ नहीं है अपितु जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य आत्म साक्षात्कार है। परा विद्या हमारी भावनात्मक अस्थिरता को दूर करने के साथ-साथ हमारे विभ्रम को भी दूर करती है । परा विद्या के अनुकरण से ही मनुष्य में परोपकार , धैर्य , संतुलन , करुणा जैसे उदात्त मानवीय गुण और नैतिक मूल्य जन्म लेते हैं । परा विद्या ही हमें पशुओं से मनुष्य बनाती है और यही हमें मृत्यु के भय से मुक्त करती है । परा विद्या मनुष्य को बाहरी दुनिया से हटाकर उसे उसकी आत्मिक शक्ति से जोड़ती है । भौतिक रूप से प्रचुर समृद्धि के बाद एक ऐसी स्थिति आती है जब मनुष्य को अनुभव होता है कि उसके जीवन में शांति नहीं है। उसके जीवन में एक तरह की रिक्तता है । उसकी यही जिज्ञासा उसे संसार से परे उन्मुख करती है । यहां से उसकी जो यात्रा शुरू होती है वह परा विद्या के अधिकार क्षेत्र में आती है । सुखपूर्वक जीवन जीना मनुष्य की आकांक्षा हो सकती है लेकिन उसके जीवन का परम लक्ष्य शांतिपूर्ण जीवन ही है ।
संसार में ऐसे असंख्य लोग हैं जिन्होंने अपने सुख सुविधापूर्ण जीवन का परित्याग कर शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग चुना है। इन्होंने इसके लिए न केवल अपनी जीवन शैली बदली अपितु अपने चिंतन मनन की धारा में भी परिवर्तन किया । जीवन शैली और चिंतन मनन में बदलाव के फलस्वरुप इनके जीवन में क्या परिवर्तन आया , इन्हें किस तरह के अनुभव हुए , इन सब बातों को इन्होंने अपने लेखों , कहानियों , कविताओं और उपन्यासों में लिपिबद्ध किया है और इन्हें पढ़ कर संपूर्ण मानव जाति लाभान्वित हुई है । भविष्य में भी इस तरह की खोज करने वाले लोगों की संख्या यथावत बनी रहेगी और वह अपने अनुभव आधारित लेख, कविताएं, कहानियां और उपन्यास लिखते रहेंगे और इनका साहित्य संपूर्ण मानव जाति के लिए एक दीप स्तंभ का कार्य करता रहेगा । लेकिन वे रचनाकार महत्वहीन हो जाएंगे जिन्हें जीवन का कोई प्रत्यक्ष अनुभव अथवा आत्मज्ञान नहीं होगा ।
— शिवकुमार बिलगरामी