मैं हर रोज उस खिड़की से निहारा करता हूँ
मैं हर रोज उस खिड़की से निहारा करता हूँ
खामोश रहकर भी किसी को पुकारा करता हूँ
लोग कहते हैं अब ना आएंगे फिर जाने वाले
मैं तो फिर भी उम्मीद से रस्ता निहारा करता हूँ
मैं हर रोज उस खिड़की से निहारा करता हूँ
खामोश रहकर भी किसी को पुकारा करता हूँ
लोग कहते हैं अब ना आएंगे फिर जाने वाले
मैं तो फिर भी उम्मीद से रस्ता निहारा करता हूँ