पोथी समीक्षा: लखिमा की आंखें।
पोथी समीक्षा: लखिमा की आंखें।
-आचार्य रामानंद मंडल।
हिन्दी उपन्यास लखिमा की आंखें बंगाली रांगेय राघव रचित उपन्यास हय। अइमे मिथिला के महारानी लखिमा के मादे कवि विद्यापति के जीवन वृत्त लिखल गेल हय। उपन्यास यात्रा वृत्तांत के रूप मे लिखल गेल हय। लेखक वृंदावन के यात्रा पर छतन। यात्रा क्रम मे कृष्ण भक्ति के उपासक गौरांग महाप्रभु सम्प्रदाय दल के भक्ति गीत नृत्य से महारानी लखिमा के उपास्य कवि विद्यापति के बारे मे जानकारी मिलैत हय।तब लेखक राघव कवि विद्यापति के गांव बिसिपी अवैत हतन।आ हुनकर प्रपौत्र से मिलैत हतन। प्रपौत्र से कवि विद्यापति के बारे मे विस्तार से जानकारी पवैत हतन।राजा शिव सिंह के देल विसिपी गाम के संगे हुनकर रचना साम्राज्य के जानकारी। प्रपौत्र के घर मे महाशिव उदना के वंशज बालक से भेंट होइत हय। कवि विद्यापति से संबंधित दंत कथा सभ से परिचित होइत हतन।जैमै कवि विद्यापति के समकालीन पं जगन्नाथ मिश्र अपन २३बर्षीय पुत्री के धन के लोभ में एगो कुलीन एगो बच्चा से बिआह के लेल तैयार हो जाइत हय। कवि अइ बाल विआह के रोके के लेल पिया मोर बालक हम तरूणी गे के रचना क के पांति मिश्र जी के भेज देइत छतन।मिश्र जी रचना पढ के अपन युवती लरकी के विआह न करैत छतन।
रचनाकार स्वप्न मे कवि विद्यापति के अंतिम यात्रा देखैत छतन। कवि अपना जीवन से बहुत दुखी छतन।जीवन भर हम रमणीसे क्रीड़ासक्ते बनल रहली।भजन के लेल अवकाश कंहा मिलल।हम कैइसे भवसागर पार करब। कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी के दिन गंगा के किनारे प्राणांत हो जाइत हय।
रचनाकार बृंदावन धाम के यात्रा पर निकल पड़लैन हय।नाव से यात्रा हय। यात्री वसंत के गीत गा रहल हय।राजा शिव सिंह आ महारानी के आमोद प्रमोद के रस रंग गीत।आ मिथिला के महाराजा शिवसिंह, महारानी लखिमा, कवि विद्यापति आ शासन प्रशासन के दृश्य उभर रहल हय। महाराजा शिवसिंह आ लखिमा से अनन्य प्रेम। महारानी लखिमा कवि विद्यापति के देवता मानैत छतन।हुनकर मानना हय कि कवि देवता होइ छैय।दोसर तरफ राज के मंत्री, पुरोहित आ ब्राह्मण वर्ग के मानना हय कि कवि विद्यापति के गीत राज काज आ समाज के लेल उचित न हय।खास के गीत मे लखिमा के उल्लेख त बिल्कुल उचित न हय कि लोग गीत में महारानी लखिमा के नाम उच्चरित करे।परंच राजा आ रानी गीत के धार्मिक माने।वो कृष्ण भक्ति के गीत माने।अही बीच दिल्ली के सुल्तान महमूद मिथिला पर आक्रमण करैय हय।राजा शिवसिंह एकटा क्षत्रिय कर्तव्य समझैत युद्ध करैत हतन।आ युद्ध मे विजयश्री प्राप्त करैत हतन। मिथिला में विजय के नगाड़ा बजैत हय। कुछ दिन बाद राजा शिवसिंह बिमार पड़ैत हतन आ राजप्रसाद में महारानी लखिमा आ कवि विद्यापति के समक्ष हुनकर प्राण पखेरू उड़ जाइत हय।राजा शिवसिंह पुत्रहीन रहलन तै छोट भाई पद्म सिंह राजा बनैत हय। महारानी लखिमा विधवा के जीवन व्यतीत करैत हय। हालांकि लखिमा कवि विद्यापति से प्रेम गीत सुनैय चाहैत हय।परंच कवि विद्यापति घर पर रहैत धार्मिक ग्रंथ लिखैत हतन।
रचनाकार शारीरिक अक्षमता के कारण बृंदावन के यात्रा पूरा न कर सकैत पाबत हय।
रचनाकार कवि विद्यापति द्वारा वर्णित लखिमा के आंख से प्रभावित होके संभवत: रचना के नाम लखिमा के आंखें रखले हतन।
प्रस्तुत उपन्यास मिथिला आ मिथिला साहित्य के इतिहास पर प्रश्न चिह्न ठाढ करैत हतन। प्रथम राजा शिवसिंह क्षत्रिय हतन।दोसर युद्ध में विजयी रहलन आ राजप्रासाद में प्राण त्यागलन।तेसर महारानी लखिमा मिथिला राजप्रसाद में बैधव्य जीवन व्यतीत केलन। महाराजा शिवसिंह के मरणोपरांत छोट भाई पद्म सिंह महाराजा बनलन। चौथा कवि विद्यापति गांव में शेष जीवन धार्मिक पोथी रचना में बितैलन।पांचम महाशिव के नाम उगना नहि उदना हय।अंततः उपन्यास लखिमा की आंखें बारम्बार पढैय के उत्सुकता जगैबै हय।
-आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।