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21 Nov 2025 · 3 min read

पैप... पैप ...पैपराजी...!

व्यंग्य

पैप… पैप …पैपराजी…!

यह इलू इलू क्या है? इलू इलू। बहुत पुरानी पिक्चर ने समझाया..आई लव यू। सब इलू इलू कहने लगे। फिर यह बंद हो गया। प्यार की कहानी यहीं एंड हो गई।
अब एक नया शब्द चला है पैपराजी। कुछ लोग इसको पेपर राजी कहते हैं। कुछ लोग इसे पापा जी कहते हैं। कुछ लोग पै पै करते हैं। उनसे बोला नहीं जाता।
पैपराजी…! चक्कर में मत पड़ो भाई। यह एलीट क्लास मच्छर है। मिडिल क्लास फैमिली से है। कानों में भिनभिन करता है। रात को सोने नहीं देता। यह बहुतायत में पाया जाता है। नर और मादा इसके सांस्कृतिक स्वरूप हैं। मच्छर मारना, कला है। संस्कृति है। जनतंत्र है। एक मच्छर क्या नहीं कर सकता? सब कुछ कर सकता है। जैसे एक वोट की कीमत, वैसे ही पैपराजी की।

1960 में आई एक इतालवी फिल्म आई ‘ला दोल्चे विता’। फिल्म में एक फोटोग्राफर था- ‘पापाराजो’। वह हर समय मशहूर हस्तियों का पीछा करता। उनकी तस्वीरें खींचता। यानी मच्छरों वाले गुण। इतालवी में पापाराजी को मच्छर कहते हैं। यह पहला मच्छर यानी पापा राजो था -ताजियो सेचियारोली। इसमें पापा की ध्वनि थी। ओल्ड नेम। ओल्ड फैशन। सो इसको बदल दिया। और यह हो गया-पैपराजी।
नाम वह होना चाहिए जो कोई न समझे। वो नाम क्या जिसको सुनकर चक्कर न आए। मच्छर का सौभाग्य देखिए। आज बॉलीवुड हॉलीवुड उसको प्यार से कहते हैं…माय स्वीट पैपराजी। कहीं पे निगाहें। कहीं पर निशाना।

ज्यादा दिमाग पर जोर मत डालिए।

पैपराजी का मतलब है फोटोग्राफर। जैसे मच्छर मंडराते हैं। वैसे फोटोग्राफर। यह भुना हुआ, जला हुआ नाम है पैपराजी। फोटोग्राफर की अलग अलग श्रेणी हैं। कुछ लोग कुछ भी खींचते हैं। कुछ लोग एक को ही खींचते हैं। कुछ लोग बैडरूम तक पहुंच जाते हैं। इनका बहुत रोल है। अखबार की दुनिया के यह सिंदूर हैं। ये न हों तो रूप सज्जा नहीं होती। बिना सिंदूर के सुहागिन क्या? बिना फोटो के अखबार क्या? टीवी क्या?

पैपराजी कुछ अलग है। यह तांक झांक करता है। सेलिब्रिटी को परेशान करता है। उनकी हर हरकत पर नज़र रखता है। उनके राज खोलता है। इसका काम यही है। इसी के पैसे हैं। कभी शादी में देखिए। हाथों की मेहंदी भी शर्मा जाए! उसको भी नहीं पता..”ओह, मैं इतनी सुंदर हूं।” जयमाला पर तो और बुरा हाल। “इधर… इधर… इधर” की धुन। इनका बस चले..खुद जयमाला डलवा ले।

पॉलिटिकल पैपराजी अलग हैं। यह एक आंख से सिर्फ एक को देखते हैं। कोई दूसरा नहीं। वन टारगेट। वन फोकस। राजनीति में इनको पैपराजी नहीं बोलते। क्या बोलते हैं, इनको भी नहीं पता। अलबत्ता, बी और सी ग्रेड में इनकी डिमांड है। कैमरा सामने आते ही सुर बदल जाते हैं।

फिर ये मच्छर क्यों? एक एक्ट्रेस बता रही थी..”बिना मेकअप निकल ही नहीं पाते। बाहर पैपराजी होते हैं। देखते ही लपक जाते हैं। न सोते हैं। न सोने देते हैं। मेरी प्रेग्नेंसी है। विंडो पर हम कपल खड़े थे। पैपराजी आ गए। सबको पता लग गया..गुड न्यूज आ रही है।”
पैपराजी और मच्छर में समानता है। दोनों समूह में रहते हैं। गुनगुन करते हैं। कोई भी इनको हाथ के पंखे से भगा देता है। ये दोनों जिद्दी हैं। हटते नहीं। आप जो बंद आंखों से…(चुपके-चुपके…चोरी चोरी.. ) देखना चाहते हैं, उसको ये दिखाते हैं। पब्लिक को क्या दिखाना चाहिए, ये बताते हैं। पापा राजी कहो, पैपराजी, या पापारात्‍सी..क्या फर्क पड़ता है।

सूर्यकांत
21.11.2025

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