#जीवन_दर्शन-
#जीवन_दर्शन-
■ गीतों का निर्झर ले ले.….।।
【प्रणय प्रभात】
★ कुछ दिन अदला-बदली कर लें, हम अपने अरमानों की।
मुझको धरती की चाहत है, तुझको चाह उड़ानों की।।
दे आराम थकन को मेरी, ये ले मेरे पर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
★ नहीं अधूरापन जाएगा, मगर टीस मद्धम होगी।
नए-नए कुछ अनुभव होंगे,
नीरसता भी कम होगी।।
तेरी गठरी मेरे सर रख, मेरी अपने सर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
★ क्यूँ कर रोना मजबूरी पर, देना भाव अभावों को?
कौन बुलाए न्यौता दे कर, इन बेरहम तनावों को??
कुछ अच्छे पल दे मुस्का कर, बदले में हँस कर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
★ बस इतनी सी चाहत मेरी, तू मेरे सच को जाने।
जिजीविषा जीवन का मानी, इस सच्चाई को माने।।
अनुभव अपना बांट रहा हूँ, चाहे तो आ कर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
★ धूप-छांव के साथ हवाएंऔर फुहारें बरसाती।
एक कुटी, उपयोगी साधन, बस विरक्त मन की थाती।।
थोड़ा सा आंगन दे मुझको, चाहे सारा घर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
★ सुख-दु:ख, हर्ष-विषाद एक से,
अब कोई प्रतिकूल नहीं।
वो सब कांटे दे सकते हैं, जो दे सकते फूल नहीं।।
भाव-हीन सूखी धरती तू, गीतों का निर्झर ले ले।
बित्ते भर की धरती दे दे, मुट्ठी भर अम्बर ले ले।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)