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17 Nov 2025 · 10 min read

आचार्य चाणक्य। ~ रविकेश झा।

जीवन में सब सफल होना चाहते हैं इसके लिए दिन रात स्वप्न देखते रहते हैं संघर्ष करते रहते हैं। कोई बेईमानी से सफल होना चाहता है तो कोई ईमानदारी से संपन्न होना चाहता है। संपन्न शब्द बहुत प्यारा है जो बाहरी सफलता और आंतरिक आत्मिक सफलता के बीच सेतु है बांध है दोनों को बांध कर बीच में खड़ा है। सम्पन्न शब्द ठीक है सफल में विभाजन मालूम पड़ेगा कैसा सफलता बाहर से या भीतर से हम पहले भी पिछले लेख में बात कर चुके हैं आंतरिक सफलता के ओर। ईमानदार संपन्न होना चाहता है और बेईमान सफल। सफल शब्द से कोई मुझे समस्या नहीं लेकिन साउंड और अर्थ की बात है सेतु की बात है हृदय की बात है जोड़ने की बात है अवचेतन और अति चेतन मन की बात है सफल चेतन मन पर रुक जाता है संपन्न यानी पूर्ण, पूर्ण यानी हृदय, हृदय यानी परमात्मा, परमात्मा यानी शून्य। हमें बारीकी से देखना होगा स्वयं को सभी को स्वतंत्र होकर देखना होगा तभी हम सार्थक में आयेंगे और चुनाव यानी पूर्णता के ओर बढ़ेंगे। हमारे जीवन में इतना जटिलता है और वो हमने ही क्रिएट किया हुआ है हमें अस्तित्व ब्रह्मांड की कोई चिंता नहीं है जो देखते हैं वही बन जाते हैं चौंकते नहीं है भाव में फंस जाते हैं वासना में उतर जाते हैं साहब। हमें पहले स्वयं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना होगा स्वयं के प्रति झुकना होगा अहंकार बाधा बनता है मैं जानता हुं आप जब स्वयं के सामने नहीं झुकते फिर अस्तित्व या दूसरे मनुष्य के प्रति कैसे करुणा प्रेम दिखा सकते हैं। भाव को हम पत्थर बनाते जाते हैं हम फील करना भूल गए हैं उपरी मन में रहते हैं दिन भर अपनी वासनाओं को पूर्ण करने में लगे रहते हैं। हमें जागना होगा हमारे पास इतना विज्ञान का साधन है सोशल मीडिया है इंटरनेट है हम बढ़िया और टिकाऊ विकास के ओर बढ़ सकते हैं लेकिन नहीं हमें अश्लील फोटो वीडियो में रुचि अधिक है हमें बस स्त्री चाहिए भोग में रहना है, प्रेमी भी नहीं डायरेक्ट भोगी। प्रेमी भोगी में यही अंतर है प्रेमी भीतर से जीता है फील करता है और भोगी बाहर से चेतन से वासनाओं को पूरा करता है चेतन अभी आपका मछली पकड़ने वाला फिशिंग हुक के तरह है मछली को पकड़ने के लिए जाल बिछाना मक़सद तो आप जानते ही है मन का वासना पूरा करना रहता है बस।

आज हम बात कर रहे हैं महान विचारक आचार्य चाणक्य जी के बारे में उन्हें महान मात्र बाहरी कार्यों के लिए नहीं बल्कि वो भीतर से भी पूर्ण सफल थे वो महान आत्मा हैं, वो अपने जीवन को मानवता समानता करुणा प्रेम शिक्षा विज्ञान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते रहे। वे प्राचीन भारत के महान विचारक हैं उनके जैसा अद्वैत कोई और नहीं शास्त्र और शस्त्र में उन्हें महारत हासिल था वे महान योगी हैं। आचार्य चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। अपनी गहन बुद्धि और रणनीतिकार कुशाग्रता के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजनीति, अर्थशास्त्र और शासन के बारे में चाणक्य की अंतर्दृष्टि दुनिया भर के विचारक के प्रभावित करती रही है। चाणक्य का जन्म प्राचीन मगध साम्राज्य में हुआ था, जो वर्तमान भारत के बिहार राज्य में है। वे उस युग के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक, तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक थे। शासन कला और राजनीति विज्ञान में चाणक्य के योगदान को उनकी मौलिक कृति, अर्थशास्त्र में समाहित किया गया है। अर्थशास्त्र शासन, अर्थशास्त्र और सैन्य रणनीति पर एक व्यापक ग्रंथ है उनकी योगदान उन्हें महान बनाता है। यह एक राज्य के प्रशासन के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, आर्थिक समृद्धि और प्रभावी नेतृत्व के महत्व पर प्रकाश डालता है। चाणक्य का दर्शन व्यावहारिकता और दूरदर्शिता पर ज़ोर देता है। उन्होंने एक मज़बूत केंद्रीकृत सरकार की वकालत की और कूटनीति व रणनीतिक गठबंधनों की शक्ति मे विश्वास किया। उनकी शिक्षाएं नैतिक शासन और जन कल्याण के महत्व पर ज़ोर देती हैं। चाणक्य की उल्लेखनीय शिक्षाएं में से एक दंड नीति, की अवधारणा है, जो सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए कानून और व्यस्था के उपयोग को संदर्भित करती है। उनका मानना था कि राज्य की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए एक शासक को दयालु और अधिकारपूर्ण दोनों होना चाहिए। चाणक्य के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और आधुनिक राजनीतिक और आर्थिक रणनीतियों को प्रभावित कर रहे हैं तड़ीपार को छोड़कर। रणनीतिक सोच और नेतृत्व पर उनका ज़ोर दुनिया भर के नेताओं और नीति निर्माताओं को प्रेरित करता रहता है। आजकल, चाणक्य की रणनीतियों का अक्सर बिज़नेस स्कूलों में अध्ययन किया जाता है, जहां उनके सिद्धांत को कॉर्पोरेट प्रशासन और प्रबंध प्रथाओं पर लागू किया जाता है।

आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त के बीच एक ऐतिहासिक साझेदारी रहा है जो दोनों को अद्वैत के ओर ले जाता है। भारतीय इतिहास के इतिहास में, आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच साझेदारी जितनी प्रभावशाली रही है, उतनी कम ही रही है। उनके सहयोग ने न केवल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि शासन और रणनीति की नींव रखी जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित और प्रभावित किया। उन दोनों के कारण ही नंद वंश की जड़ हिला और एक हिंसक भोगी और अन्यायी राजा धनानंद को सत्ता से हटाने में अपना योगदान दिए। आचार्य चाणक्य एक कुशल राजनीतिज्ञ रणीतिकार और अर्थशास्त्री थे। दूसरी ओर, एक युवा और महत्वाकांक्षी नेता, चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य राजवंश के संस्थापक बने। दोनों मिलकर भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी। आप लोग नंद वंश के संस्थापक से भी परिचित होंगे, आप लोग इतिहास में महान और आक्रामक हिंसक दोनों देखे होंगे एक कैसे भी और एक न्याय के साथ करुणा प्रेम शिक्षा समानता मानवता के साथ। आप लोग सभी को पढ़े होंगे कितने वंश आए और गए ये मैं प्रतिशोध से परिवर्तन की ओर में लिखा था कितने राजा के बारे में बात करे सबका अपना एक जीवन काल रहा है। कोई धार्मिक रहा है तो कोई धनी कोई भोगी बना तो कोई योगी।

चाणक्य एक दूरदर्शी व्यक्ति थे जिन्होंने एक शक्तिशाली शासक के अधीन भारत के एकीकरण की भविष्यवाणी की थी। व्यापत भ्रष्टाचार और कुशासन से निराश होकर, उन्होंने एक स्थिर और समृद्ध समाज अखंड भारत का निर्माण करने का प्रयास किया। उनकी पुस्तक, अर्थशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र और शासन की उनकी गहरी समझ का प्रमाण है। उनके रणनीतिक दिमाग ने चंद्रगुप्त की क्षमता को पहचाना और उनमें एक महान नेता के गुण देखे। चाणक्य के मार्गदर्शन ने चंद्रगुप्त के नेतत्व कौशल को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें साम्राज्य निर्माण के कठिन कार्य के लिए तैयार किया। चंद्रगुप्त मौर्य साधारण मूल के थे, लेकिन उनमें अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प था। चाणक्य के मार्गदर्शन में, उन्होंने एक समर्पित सेना एकत्र की और नंद वंश को उखाड़ फेंकने के लिए एक अभियान चलाया, जो उस समय उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन कर रहा था। रणनीतिकार चालों, चतुर कूटनीति और निर्णायक युद्धों की एक श्रृंखला के माध्यम से, चंद्रगुप्त इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे। उनके सत्ता में आने से भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हुई।

चंद्रगुप्त के नेतत्व में मौर्य साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ और आधुनिक भारत, पाकिस्तान और उसके बाहर के विशाल क्षेत्रों में फैल गया। यह विस्तार केवल सैन्य शक्ति के कारण ही नहीं, बल्कि चाणक्य द्वारा तैयार की गई प्रभावी प्रशासनिक रणनीतियों के कारण भी हुआ। उन्होंने आर्थिक समृद्धि और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली लागू की। बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार और कृषि को प्राथमिकता दी गई, जिससे एक समृद्ध साम्राज्य का निर्माण हुआ। उनकी सफलता में योगदान देने वाली कुछ प्रमुख रणनीतियां इस प्रकार थीं। एक मज़बूत नौकरशाही व्यवस्था के साथ केंद्रीकृत प्रशासन व्यापार और आर्थिक नीतियों पर ज़ोर पड़ोसी राज्यों के साथ रणनीतिक गठबंधन और राजनयिक संबंध पर भी बल दिया। चाणक्य और चंद्रगुप्त के बीच साझेदारी ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी कहानी केवल विजय और साम्राज्य निर्माण के बारे में नहीं है; यह दूरदर्शी नेतृत्व और रणनीतिक सोच की शक्ति के बारे में है। उनके योगदान का अध्ययन और सम्मान आज भी जारी है, जो नेतृत्व, रणनीति और शासन में बहुमूल्य शिक्षाएं प्रदान करते हैं। उनकी विरासत आज भी नेताओं और रणनीतिकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच ऐतिहासिक सहयोग इस बात का प्रमाण है कि कैसे दूरदर्शी नेतृत्व और रणनीतिक योजना समाज को बदल सकती है। उनकी साझेदारी ने भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली साम्राज्य में से एक की नींव रखी और आज भी प्रेरणा और सिख का स्रोत बनी हुई है। उनकी यात्रा को समझने से सत्ता की गतिशीलता, मार्गदर्शन के महत्व और इतिहास के पाठ्यक्रम पर सुविचारित रणनीतियों के प्रभाव के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है।

चाणक्य राजनेता भी रहे लेकिन फिर भी उन्हें राजनीति स्पर्श नहीं किया, वे सबके लिए जिए। वे ऐसे साम्राज्य और समाज का निर्माण किए जहां शिक्षा कला ध्यान विज्ञान संस्कृति भाईचारा प्रेम करुणा शांति को पूरा स्थान दिया गया। उनके यात्रा को पढ़ कर हमें ये सीखने और समझने को मिलता है कि हम चाणक्य भी हो सकते हैं और चंद्रगुप्त भी हम बुद्ध भी हो सकते हैं और कृष्ण भी हमारे भीतर संभावना बहुत है लेकिन हम अंधेपन के कारण मूर्छित हुए हैं। हम कुछ और हो सकते हैं लेकिन हम ध्यान नहीं देते हम मरे हुए जीते हैं, इतने बुद्ध पुरुष महा पुरुष जन्म लिए हैं पृथ्वी पर बहुत महान हुए हैं कुछ हिंसक भी हुआ है जो अपने विचार को कैसे भी मनवाने के लिए किसी भी हद तक गए। धर्म और धन, ध्यान धर्म या धन इसको समझना होगा जो धर्म तक सीमित रहेगा वो कैसे भी राज करेगा जैसे अभी का हाल है क्योंकि विवेक ध्यान से आता है विवेक और सच्चा ज्ञान धर्म और धन से परे जाने के बाद होता है फिर वो सबके लिए जीता है। चाणक्य के नेतृत्व में रणनीतिक सोच और दूरदर्शिता के महत्व पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि एक नेता को अंतर्दृष्टिपूर्ण होना चाहिए और भविष्य की चुनौतियों का अनुमान लगाने की क्षमता होनी चाहिए। चाणक्य के अनुसार, एक सफल नेता को परिवर्तन के अनुकूल होना चाहिए। अपनी टीम की खूबियों और कमज़ोरियों को समझना चाहिए। खुले संवाद को प्रोत्साहित करना चाहिए। चाणक्य की शिक्षाएं एक मज़बूत, एकजुट टीम बनाने के महत्व पर प्रकाश डालती हैं। उन्होंने नेताओं को योग्यता के आधार पर व्यक्तियों का चयन करने और विश्वास और सहयोग का माहौल बनाने की सलाह दी।

चाणक्य की अंतर्दृष्टि शासन और नेतृत्व से कहीं आगे तक फैली हुई हैं। उन्होंने व्यक्तिगत विकास पर गहन सलाह दी और निरंतर सीखने और विकास की आवश्यकता पर बल दिया। व्यक्तिगत विकास पर उनकी प्रमुख शिक्षाएं में शामिल हैं। व्यक्तिगत विकास के लिए आजीवन सीखना आवश्यक है। आत्म अनुशासन सफलता की ओर ले जाता है। वित्तीय अनुशासन सफलता की ओर ले जाता है। वित्तीय साक्षरता स्वतंत्रता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। चाणक्य के अनुसार, आत्म अनुशासन सफलता की आधारशिला है। उनका मानना था कि जो व्यक्ति अपने आवेगों पर नियंत्रण रखते हैं और ध्यान केंद्रित रखते हैं, उनके अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना अधिक होती है। आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी थे। अर्थशास्त्र में उनके कार्य ने धन प्रबंधन, कराधान और बाजार विनियमन के सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत की है। उनकी कुछ आर्थिक अंतर्दृष्टियों में शामिल हैं। कुशल कराधान प्रणालियों राज्य और उसके नागरिकों दोनों के लिए लाभकारी होती हैं। शोषण को रोकने के लिए बाजार विनियमन आवश्यक हैं। स्थिरता और विकास सुनिश्चित करने के लिए धन का बुद्धिमानी से प्रबंधन किया जाना चाहिए। चाणक्य के आर्थिक सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं आधुनिक अर्थशास्त्री और नीति निर्माता अक्सर समकालीन आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी रणनीतियों से प्रेरणा लेते हैं।

आचार्य चाणक्य की शिक्षाएं युगों और संस्कृतियों से परे एक शाश्वत ज्ञान प्रदान करती हैं। नेतृत्व, व्यक्तिगत विकास और अर्थशास्त्र पर उनकी अंतर्दृष्टि को लागू करके, व्यक्ति और नेता दोनों ही आज की दुनिया की जटिलताओं को अधिक स्पष्टता और उद्देश्य के साथ समझ सकते हैं।

उनके कुछ विचार नीचे है।

एक सच्चा मित्र वह है जो हर परिस्थिति में, यहाँ तक कि दुर्भाग्य में भी आपका साथ न छोड़े। व्यक्ति कर्म से महान बनता है, जन्म से नहीं। विनम्रता आत्म-संयम का मूल है। आलसी व्यक्ति के लिए कोई वर्तमान या भविष्य नहीं होता। कामवासना के समान विनाशकारी कोई और रोग नहीं है। समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी है।
ज्ञान सबसे बड़ी संपत्ति है। संसार में सबसे कठिन तप आंतरिक शांति बनाए रखना है। जब तक कोई कार्य पूरा न हो जाए, उसे किसी को न बताएं, क्योंकि इससे आपके काम में बाधा आ सकती है। दुश्मन का सामना करने के लिए चालाकी और धैर्य आवश्यक है; उसके गुप्त दोषों को समझने के लिए मित्र जैसा व्यवहार करें। ईमानदारी से जीवन जीने वाला व्यक्ति हमेशा सम्मान पाता है। सच्चाई से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। अन्याय से कमाया हुआ धन निश्चित रूप से नष्ट हो जाएगा। फूलों की सुगंध हवा की दिशा में फैलती है, लेकिन मनुष्य की अच्छाई हर दिशा में फैलती है। अतीत की असफलताओं से सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए और बीती बातों में अटके नहीं रहना चाहिए। केवल भाग्य पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने कर्मों और लगन से भाग्य का निर्माण करना चाहिए।
सफलता एक प्रक्रिया है, जो समय, अनुभव और धैर्य से मिलती है। जो चीज़ें तुरंत मिल जाती हैं, वे ज़्यादा दिन नहीं टिकतीं। सबसे अच्छी और पर्फेक्ट विचार ये है कि अपने मन की बात किसी को नहीं बताएं अपनी योजना को गुप्त रखें, सही है एकदम सच है। जब आप नहीं रह पाए जब आप बता दिए फिर सामने वाले क्यों रुकेगा जब आपसे रहा नहीं गया करुणा आ गया विचार बाहर निकल गया फिर उसके पास भी तो वही शरीर और मन है। इसीलिए मुझे ये विचार इनका सबसे ज्यादा अच्छा लगता है इसको मैं चेतन मन से तोड़ कर देखता हूं तो सही है सत्य है, इन्द्रियों और भावना पर कंट्रोल होगा तभी हम पूर्ण होंगे और परफेक्ट भी।

सभी की जीवनी पढ़नी चाहिए सभी को स्वतंत्र होकर पढ़ना चाहिए पढ़ने समय पक्ष नहीं न विपक्ष एकदम शांत होकर पढ़ना चाहिए ताकि पूर्ण स्पष्टता आए।

इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद और सभी को प्रणाम।

धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️😊,

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