विनती
करती हूं विनती मैं स्वास्तिकतिमान से
मांगू आत्मा की शांति करूणानिधान से
जो भी हुआ जैसे हुआ बदल नहीं सकता
फिर कभी न हो यही प्रार्थना दयानिधान से
पीढ़ा में बहुत परिवार हैं धीर धर रहे
उनको मिले साहस सेवा जो कर रहे
दिन रात हमारे भाई बहिन हैं जुटे हुए
हम भी सबके के लिए अरदास कर रहे
मेरी संवेदनाओं को प्रभु स्वीकार कर लेना
हताहत जो भी हुए उन्हें एक पार कर लेना
भावनाओं में हम सभी की प्रार्थना है नाथ
धैर्य साहस और विवेक का दान कर देना
यूं तो मुझे अंदेशा यही कोई साजिश रची गई
हो न हो कोई बात छिपी कोई रंजिश रखी गई
हे नाथ सबकुछ हाथ तेरे वीभत्स घटना में
किसी न किसी व्यक्ति की बुद्धि तो हरी गई
दर्द में डूबे हुए लोगों को हौसला मिले
कर्म हो अपने जिससे उन्हें घोंसला मिले
उजड़े हुए चमन कुछ अब भी है बाकी
विनती यही हे नाथ उन्हें कोई तो लॉ मिले