आत्मनिर्भर योजना (स्वच्छंद कविता)
रोज़ संपन्नता और खुशी का प्रदर्शन,
करता था एक ग़रीब।
निकलता था पहनकर,
अपनी शादी वाले,
कोट-पैंट और जूते;
लगाता था सेंट भी।
मैंने पूछा,
“क्यों करते हो ऐसा,
जबकि मुझे मालूम है तुम्हारी सच्चाई?”
उसने कहा,
“इसलिए कि,
पता न चले दुनिया को,
किस हाल में जी रहा हूँ मैं।
इसलिए कि,
मुझे दुखी देखकर,
लोग मुझपर सहानुभूति दिखाएंगे;
या, मेरा मज़ाक उड़ाएंगे।
फिर, मेरी इस आत्मनिर्भर योजना का क्या होगा?
शायद! इस तरकीब से ही,
देश का हर ग़रीब,
एक दिन आत्मनिर्भर बनेगा।”
- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 30/10/2025