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10 Nov 2025 · 10 min read

प्रतिशोध से परिवर्तन के ओर। ~ रविकेश झा।

यहां अधिकतर लोग गुंडे बदमाश बनना चाहता है क्योंकि उनके मार्गदर्शक भी ऐसे ही मिल रहे हैं। मिल रहे हैं यह कहना ही उचित होगा, क्योंकि सब राजनीतिज्ञ सभी को राजनीति में ला रहे हैं। आप देख सकते हैं जो भारत के आज़ादी के समय से कांग्रेस के समर्थक थे वो आजादी के कारण साथ दे रहे हैं अब उन्हें भी किसी एक धर्म से जोड़ने में लगे हुए हैं वो भी जुड़ रहे हैं ताकि जेल ना जाना पड़े देशद्रोही न होना पड़े। एक ओर एनडीए तो एक ओर इंडिया दल को मानने वाले हैं कुछ दो भागों में बट गए हैं तो कुछ ऐसे हैं जो भीतर से जुड़े है जानते है सब कुछ लेकिन समर्थन किसी को नहीं। जैसे ईमानदार पत्रकार या सच्चा संत या कुछ पढ़े लिखे हैं जो राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन यहां एक बात देखना होगा जो पढ़े लिखे लोग हैं जो भीतर से जुड़े थे वो भी अब धर्म और पाप न लग जाए इस कारण राजनीति में आ रहे हैं। उसका मुख्य कारण है एनडीए की राजनीति और कूटनीति दोनों में मोगली जी को महारथ हासिल करना है। लेकिन बीजेपी को हिंदू से कोई मतलब नहीं है न आरएसएस को इन्हें बस सत्ता हासिल करना है हिंदू अधिक है इसीलिए उनके समर्थन में बोलते है कहने का अर्थ है अधिक लाभ पहुंचाते हैं, मुस्लिम अधिक रहता तो मुस्लिम समुदाय को लेकर चलते, लेकिन झूठ बोलने में माहिर है अतीत से स्वयं को जोड़ देते हैं और दूसरे को भी अपने ज्ञान थोपते रहते हैं। इन सबका एक ही मक़सद है प्रतिशोध न कि परिवर्तन न कि रूपांतरण न कि प्रेम करुणा और शांति। घृणात्मक बयान क्रोध में रहना ये सब मूर्ख की निशानी है लेकिन मूर्ख को देखो दूसरे को मूर्ख और स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं। मूर्ख को लगता ही नहीं कि वो मूर्ख है उसे तो खुशी मिलती रहती है ये सोचकर की हम बदला ले रहे हैं लेकिन किससे ले रहे हैं ये भी मान लेते हैं। हम दूसरे को भिन्न समझते हैं स्वयं से यही कारण हम मूर्खता में रहते हैं। भिन्न का अर्थ है कि वो अलग है वो दूसरे धर्म वर्ण का है उसका ईश्वर अलग है वो मेरे ईश्वर को माने तो ठीक नहीं तो वो दुश्मन है। हमने वर्ण व्यवस्था भी इज़ात कर लिए हमने सभी विचारकों को अलग अलग धर्म में बांट दिए सबको ईश्वर बना दिए और हम सब भिन्न रह गए हमने लड़ना शुरू कर दिया। आप अतीत में देखो या तो धर्म के लिए लड़ाई हुई है या धन और अन्य सुख के लिए यही दो है लेकिन धर्म के कारण अधिक लड़ाई हुई है चाहे वो कोई भी धर्म हो। हम ईश्वर को भिन्न कर दिए और स्वयं को भी दूसरे मनुष्य से भिन्न कर लिए। भिन्नता ही युद्ध को बढ़ावा देता है साहब ये बात समझना होगा भिन्न हम क्यों मानते हैं या क्यों होते हैं इसका मुख्य कारण है शरीर मन और मनुष्य के संग्रह किया गया विचार जो उसे सबसे भिन्न बनने और बनाने के ओर ले जाता है। हम भिन्न होना भी चाहते हैं क्योंकि हम शरीर मन में अधिक जीते हैं जो शरीर मन में जिएगा वो अतीत और भविष्य से उलझा रहेगा वो बदला भी लेगा प्रतिशोध के साथ भविष्य में सुरक्षित रहूं इस पर भी बल देगा। क्योंकि हम जानते हैं अतीत से बेईमान गुंडे आतंकी रहे हैं और हम दूसरे टाइप के हैं दूसरे विचार पर जीते हैं तो हम अपने तरह से जिएंगे हम स्वयं को भिन्न करेंगे क्योंकि हम अपने विचारक को देखते हैं पूजते हैं मानते हैं, और सामने वाले दूसरे विचार को जो कि वो या उनके ईश्वर द्वारा बनाया गया है। सत्ता सब चाहेगा चाहे बेईमानी से चाहे ईमानदारी से ईमानदार को भी लड़ना होगा और बेईमान झूठे को भी क्योंकि मन शरीर वही है एक सबके लिए जिएगा तो एक अपने लिए अपने लिए जो जिएगा वो भ्रम फैलाने में लगा रहेगा क्योंकि उसे रावण भी बनना है लेकिन राम के मुखौटा पहन कर।

राजनीति एक खेल है बुद्धिमान इसे खेलते हैं मूर्ख दिन भर चर्चा करते हैं, जैसे मोगली जी चाल चलते हैं और अंधभक्त दिन रात चर्चा करते हैं गांव में अधिक अब तो शहर में भी उसका मुख्य कारण है धर्म ये बात मैं ऊपर भी कर रहा था। पत्रकार भी भय धर्म धन में फंस गए हैं कुछ पत्रकार हैं जो अभी भी ईमानदारी पूर्वक और निष्ठापूर्वक कार्य करते हैं सब को लेकर चलते हैं उन्हें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को खड़े रखने में अपना जान भी दे सकते हैं। लेकिन ऐसा कम है आज के गोदी मीडिया के कारण विपक्ष का पत्रकार घोषित कर दिया जाता है। मैंने ऊपर भी बोला है लोग दो भागों में बट गए हैं इंडिया दल और एनडीए दल लेकिन अभी ऐसे पत्रकार हैं जो निष्पक्ष हैं तो कुछ पक्ष विपक्ष के हैं। लेकिन जनता को देखिए कि कैसे लड़ रहे हैं एक दुसरे से उन्हें लड़वाया जाता है और वो लड़ने के लिए तैयार भी हो जाते हैं। हम प्रतिशोध के लिए अधिक जीते हैं हमें परिवर्तन और रूपांतरण में रुचि नहीं है परिवर्तन में रहना है भी तो मन तक बात को रखना है विचार रखना है लेकिन हर जगह प्रकट नहीं करना है। प्रतिशोध में हम क्यों अटक जाते हैं किसी ने कहा तलवार उठाओ हथियार उठाओ हम उठाने लगते हैं एक तरफ़ कामनाओं से भरे परे लोग कैसे भी राज करना चाहते हैं पहले तो राजतंत्र था राजा महाराजा लड़ते थे लड़वाते थे मुगल शासक हुआ बाबर हुमायूं औरंगजेब हुआ भारत में भी बहुत क्रोधी और राज्य शासक उभरे लेकिन युद्ध चलता रहा चाहे वो लोधी हो चाहे मौर्य साम्राज्य जितने भी देखो आप अतीत में कोई अपने विचार को कैसे भी थोप रहा था विकसित कर रहा था फ़ैला रहा था तो दूसरी ओर करुणा और शांति बौद्ध के अनुयायु या वैदिक धर्म आजीवक जो नास्तिक था सब अपने विचार को करुणा शांति के मार्ग से स्थापित करने में लगे थे सब का एक समय रहा कोई ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया तो कोई दलित को तो कोई एक सबको जैसे बुद्ध। लेकिन फिर भी प्रतिशोध समाप्त नहीं हुआ बुद्ध धर्म को उखाड़ फेंका ही गया अंत तक, फिर अंग्रेजों का राज हुआ स्टेलिन हुआ हिटलर हुआ हिटलर तो अलग ही नियम बना लिया। कहने का अर्थ है कि पूरे पृथ्वी पर पुरुष वर्ग का मुख्य मक़सद एक ही था धर्म के नाम पर करुणा+क्रोध या क्रोध+करुणा कैसे भी या सबके हृदय को जीतकर राज्य स्थापित करना। ऐसा हुआ भी लेकिन अभी भी युद्ध हो रहा है इस्लाम लड़ रहा है यहूदी भी ईसाई भी और हिंदू भी। कारण तो आप समझ गए भिन्नता भिन्न शब्द में बहुत दम है आप स्वयं देखो मैं भिन्नता को लेकर ही बोल रहा हूं।

एक अचेतन चेतन के के लड़ा तो एक अवचेतन चेतन अवचेतन के लिए मेरे शब्द को देखो मैं शब्द को कैसे सजा रहा हूं इसको समझो कोई करुणा क्रोध कर रहा है तो कोई अधिक क्रोध और कम करुणा। हीरो और विलेन में यही अंतर है एक में विवेक है विवेक विचार को देखता है जो विचार को देख लिया वो मनुष्य हो सकता है लेकिन विलेन जो विचार को फ़ॉलो करता है उसे कैसे भी विचार को मनवाना है उसमें विवेक नहीं वो विचार को देखने में समर्थ नहीं वो क्रोध से भर जायेगा क्योंकि वो अचेतन मन से अधिक जुड़ा रहता भाव को पत्थर में परिवर्तन कर लेता है अब उसे कुछ बोलो तुरंत प्रतिशोध में आ सकता है। विचार को कैसे देखता है विवेक विवेक अवचेतन और चेतन दोनों में अधिक रहता है जो अवचेतन में रहेगा वो विचार को देखेगा विचार बन ही नहीं जायेगा, विलेन विचार बन जाता है विलेन अचेतन में फंस जाता है क्रोध अधिक। लेकिन एक बात और विलेन कोई भी हो सकता है और हीरो भी विलेन कोई धर्म जात पर निर्भर नहीं न ही हीरो। तो हम ऐसे में कैसे परिवर्तन के ओर बढ़ेंगे साहब, कैसे उठेंगे कैसे परिवर्तन के साथ रूपांतरण में प्रवेश करेंगे कैसे हम स्वयं को परफेक्ट करेंगे। ये सब प्रश्न मन में उठ रहा होगा कि कैसे हम रूपांतरण में शामिल हों कैसे हम शरीर मन के गुलामी से आज़ाद हों कैसे मन में प्रश्न उठ रहा होगा। प्रश्न उठना भी चाहिए प्रश्न उठेगा तब ही उत्तर के ओर बढ़ेंगे अब प्रश्न है ही नहीं मन गुलाम ही रहना चाहता है आज़ादी चाहिए ही नहीं फिर उन्हें क्या अर्थ प्रश्न से या उत्तर से, उत्तर मिल भी जायेगा तभी भी गुलामी में रहेंगे उसका मुख्य कारण भौतिक सुख क्रोध वासना लोभ मोह घृणा ईर्ष्या सब भौतिक सुख में बांधना चाहते हैं। उन्हें क्या मिलेगा मिलेगा तो शांति अब शांति लेकर क्या करेंगे शून्य और परमात्मा लेकर क्या करेंगे रूपांतरण और परिवर्तन में आ कर क्या करेंगे।

प्रश्न उठना भी चाहिए और प्रश्न में ही उत्तर भी छुपा हुआ है जैसे कोई पूछता है कि मैं दुखी हूं कैसे खुश रहूं उत्तर है दुख को देखना छोड़ दुःख को पकड़ना छोड़ दो फिर दुःख स्पर्श न करेगा और गहरी ध्यान प्रश्न उठाओगे तो सुख भी स्पर्श न करेगा। सुख को पकड़ोगे तो दुख को भी अपनाना होगा और सुख खोजेंगे भौतिक में तो भौतिक एक दिन मिटेगा दुख होगा या दूसरे चीज़ की प्राप्ति के लिए दुःख में रहोगे। मानो ही नहीं लेकिन जब तक जानोगे नहीं तब तक मानते ही रहोगे आप सब। सुख दुःख की अभिलाषा है और दुःख सुख के दूसरे पहलू है चक्र है जैसे हम सुबह में नाश्ता करते हैं फिर लंच और फिर डिनर हम चक्र को रोज घुमाते रहते हैं कभी सेक्स में आ जाते हैं कभी रोमांटिक कभी भोजन कभी नींद कभी भक्ति कभी लड़ाई कभी घृणा हम चक्र को घुमाते रहते हैं और जब किसी चीज पर की वासना आ जाता है फिर करो या मरो पहले मन तक रहते हैं मन में क्रिएट करते है चक्र बनाते रहते हैं फिर शरीर में उतार लेते हैं बाहर प्रकट करते हैं। जैसे बुखार होता है भीतर शुरू होता है लेकिन रिजल्ट शरीर तक आता है गर्म होता है शरीर फिर दबा दो तो ठंडा हो जायेगा वैसे ही कामना पूर्ण होते ही मन में ठंडक पहुंचता है। वासना का अर्थ है जल्दी मन शरीर का अधिक भार अब चाहिए ही अब मन बन गया है पहले जिज्ञासा था पहले चेतन में थे बस, अब वासना हो गया है अब चाहिए ही अब अचेतन मन में आकर फंस गए हैं अब करो या मरो पर आकर सुई अटक गई है। प्रतिशोध में भर जाते हैं भिन्नता से हम शुरू करते हैं खेल फिर प्रतिशोध में आकर बदला लेने लगते हैं। प्रतिशोध का अर्थ है पत्ते काटना रूपांतरण का अर्थ है जड़ काटना, जड़ तक पहुंचना क्रांतिकारी और विद्रोही में यही अंतर है राजनेता क्रांति में रहते हैं और रूपांतरण को बढ़ावा देने वाले विद्रोह होते हैं वो जड़ तक पहुंचकर रूपांतरण हो जाते हैं फिर वो सबके लिए फिर परिवर्तन में रहते हैं वो भी घृणा के बिना परिवर्तन का अर्थ है पहले विलेन अब हीरो पहले झूठा अब सच्चा पहले हिंसा अब अहिंसा पहले मुस्लिम या अन्य तो अब ये, परिवर्तन में जो रहेगा वो सुधर तो जाएगा लेकिन अपने एक वर्ग या मन शरीर से घृणा करेगा सोचेगा विलेन अच्छा नही झूठ अच्छा नहीं हिंसा अच्छा नहीं मुस्लिम अच्छा नहीं। लेकिन रूपांतरण में हम जड़ तक पहुंच जाते हैं रूपांतरण में हम बदला नहीं बल्कि शांत रहते हैं हमारे पर निर्भर होता है कि हम क्या बोले क्या कहें किससे घृणा करे किस पर क्रोध करे और करेगा कौन अब अब तो न मन बचा न शरीर का कोई भूख न घृणा क्रोध करने का कोई मार्ग बचा। ऐसा नहीं है कि क्रोध घृणा कर नहीं सकता कर सकता है जैसे कोई पार्टी में नेता बदल जाता है जैसे कांग्रेस के नेता बीजेपी में शामिल होकर अंधभक्त बन जाता है लेकिन वो जानता है की राजनीति के लिए करना पड़ रहा है, ऐसे ही भीतर का सत्य है साहब। हम जब करुणा कर सकते हैं फिर क्रोध क्यों क्रोध से तो जीता नहीं जा सकता किसी को क्रोध से भय पैदा होता है शरीर जीत सकते हैं मन आत्मा नहीं साहब। हम छोटे सी बात के लिए लड़ लेते हैं ज़मीन हो या स्त्री या अन्य भौतिक सुख हम लड़ने में माहिर हैं ये तो मानना होगा। हम लड़ाई के बिना रह नहीं सकते हम कुछ और कर सकते हैं ये अगर हमें पता हो ऐसा मार्गदर्शक मिले फिर हम स्वयं को रूपांतरण करने में लग जायेंगे।

हमें सिखाया गया है जो शास्त्र में लिखा है वो सही है हमारे शास्त्र अलग है उसका अलग ऊपर उपर से रिश्ता रखना है लेकिन मन से नहीं उसका मुख्य कारण अतीत में जो युद्ध हुआ है वो ही कारण है। मैंने पहले ही कहा है ऊपर भिन्नता, पहले हम मनुष्य से मन से भिन्न थे अब शरीर से भी लेकिन आत्मा को हम भूल गए मन उसके पास भी है ये हम भूल गए वो भी सेम है। कट्टर धार्मिक क्या है कट्टर का अर्थ है वासना ग्रस्त कैसे भी और कहीं भी, बदला चाहिए मेरा राज्य हो वो कोई भी धर्म का हो सकता है मन शरीर वही है हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों वही है मनुष्य के पास, अब मनुष्य उसका कैसे उपयोग करता है ये उसी पर निर्भर है साहब। हम बस आंख बंद करके चलते रहते हैं कैसे भी सत्ता में रहना चाहते हैं कैसे भी परिवार में श्रेष्ठ बनके रहना चाहते हैं वहीं भिन्नता का जन्म होता है और समानता समाप्त होती है फिर हम प्रतिशोध लेने में उत्सुक होते रहते हैं। बदला में जीने से क्या होगा परमात्मा को खोज लो जिसके लिए जन्म हुआ है इसका तो पता लगाओ कि पृथ्वी पर क्यों आए हो बार बार क्यों आना पड़ा मुक्ति मिलती भी है मैं बहका रहा हूं हो सकता है एक ही जन्म हो कुछ हो सकता है पता लगाओ, लेकिन पुनर्जन्म या प्रकृति का जन्म जैसे सूखे पत्ते गिरने के बाद नई शुरुआत होती है पत्ते जन्म लेते हैं प्रकृति से कोई नहीं बचा है प्रकृति की लहर सबको डूबा देती है उठने नहीं देती। उठने देता है किसको जिसके पास सूर्य और आकाश हो चेतन मन और अति चेतन मन हो जिसका रीढ़ सीधा हो जो झुका न हो जो आकाश के ओर देखता हो वही ८४ लाख योनियों से बाहर आ सकता है जन्म जन्म के बंधन से मुक्त हो सकता है। लेकिन उसके लिए भाव का होना आवश्यक है जिज्ञासा उठना चाहिए स्वयं के प्रति जागरूक रहना होगा कृतज्ञता रखना होगा साहब।

हम मनुष्य है हमें पृथ्वी पर शांति करुणा शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए न कि युद्ध पर न कि अशांति पर साहब, तभी मनुष्य का विकास होगा और पृथ्वी पर सब खिलते रहेंगे चहकते रहेंगे आनंदित रहेंगे और पूरा पृथ्वी आनंद से भर उठेगा लेकिन कुछ राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि उनको अपने धर्म का विस्तार जो करना है युद्ध जो करना है चाहे वो कोई भी धर्म हो। हमें प्रतिशोध से परिवर्तन के ओर बढ़ना होगा रूपांतरण के ओर बढ़ना होगा हमें स्वयं मालिक बनना होगा शरीर मन पर विजय पाना होगा साहब।

इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए हृदय से आभार, प्रणाम। सभी को नमन।

धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️😊,

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