अनपढ़ माँ की जंग : ममता, संघर्ष और अस्मिता की गाथा
अनपढ़ माँ की जंग : ममता, संघर्ष और अस्मिता की गाथा
लेखक: डॉ. नरेश कुमार ‘सागर’
शैली: जीवनी / आत्मकथा
प्रकाशक: लायंस पब्लिकेशन, ग्वालियर
मूल्य: ₹375/-
🆔 ISBN: 978-81-992115-8-2
समीक्षा :- डॉ अमित कुमार बिजनौरी
परिचय
“अनपढ़ माँ की जंग” डॉ. नरेश कुमार ‘सागर’ की वह जीवनीात्मक कृति है जो मातृत्व की अनकही कहानियों को आवाज़ देती है।
यह केवल एक माँ के जीवन का लेखा नहीं, बल्कि स्त्री की अस्मिता, संघर्ष और साहस की महागाथा है।
लेखक ने अपनी माँ के जीवन के बहाने उस समाज की तस्वीर खींची है जहाँ नारी अनपढ़ तो है, पर जीवन की हर परीक्षा में सर्वज्ञ सिद्ध होती है।
कथ्य और संवेदना
इस पुस्तक की मूल धारा एक माँ के जीवन की यात्रा है —
गरीबी, सामाजिक उपेक्षा, जातिगत असमानता, पारिवारिक जिम्मेदारियों और अपनों की बेवफाई के बीच भी माँ का अडिग आत्मविश्वास इस रचना को असाधारण बना देता है।
डॉ. सागर ने माँ के प्रति अपनी श्रद्धा और पीड़ा को बिना किसी कृत्रिमता के उकेरा है।
वह माँ के जीवन को किसी आदर्श प्रतिमा की तरह नहीं, बल्कि एक सजीव, सांस लेती हुई स्त्री के रूप में प्रस्तुत करते हैं — जो थकती है, रोती है, पर हारती नहीं।
भाषा और शैली
लेखक की भाषा सहज, लोकलयपूर्ण और भावप्रधान है।
हर वाक्य में गाँव की मिट्टी की गंध है, हर प्रसंग में माँ के आँचल की गर्माहट।
संवादों और कवितामय अंशों ने कथा को जीवंत बना दिया है —
कहीं माँ की ममता झरने सी बहती है, तो कहीं उसका मौन वज्र-सा गूँजता है।
सामाजिक दृष्टि
“अनपढ़ माँ की जंग” केवल एक व्यक्तिगत संस्मरण नहीं, बल्कि सामाजिक दस्तावेज़ है —
जो भारतीय समाज के उस वर्ग की कहानी कहता है जहाँ स्त्रियाँ परिवार की रीढ़ हैं, पर पहचान के लिए संघर्षरत हैं।
यह कृति बहुजन समाज, स्त्री सशक्तिकरण और शिक्षा के महत्व पर गहरी चोट करती है।
मार्मिकता का शिखर
कई प्रसंग ऐसे हैं जहाँ पाठक की आँखें स्वतः नम हो उठती हैं —
माँ का मौन बलिदान, उसका आत्मसम्मान, और बच्चों के लिए उसका निस्सीम प्रेम – सब मिलकर इस पुस्तक को एक भावनात्मक तीर्थ बना देते हैं।
मूल्यांकन
“अनपढ़ माँ की जंग” एक सच्ची और संवेदनात्मक कृति है जो हर पाठक के हृदय में अपनी माँ की छवि उकेर देती है।
यह साहित्य के क्षेत्र में उस दुर्लभ रचना की तरह है जो कला नहीं, करुणा से लिखी जाती है।
निष्कर्ष
यह पुस्तक पढ़ने के बाद पाठक यह महसूस करता है कि
“माँ अनपढ़ नहीं होती,
वह तो जीवन की सबसे बड़ी शिक्षिका होती है।”
डॉ. सागर की यह कृति माँ के प्रेम, त्याग और संघर्ष को
एक अमर गाथा में बदल देती है —
जो हर हृदय में कृतज्ञता, करुणा और श्रद्धा का दीप जलाती है। मेरी ओर से लेखक को आकाश भर बधाई और अंनत शुभकामनाएं ।