कुण्डलिया
!! श्रीं!!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
🙏
धरती मात कराहती, सुने न कोई पीर।
सारी नदियों का हुआ, बहुत प्रदूषित नीर ।।
बहुत प्रदूषित नीर, धरा अब हुई खोखली।
लगे वृद्ध ज्यों मात, कराहे पड़ी पोपली।।
खोदीं अनगिन खान, कटे वन देख सिसकती।
अब तो सुन लो पीर, कराहे माता धरती ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा।
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