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5 Nov 2025 · 1 min read

बुलबुला सा ग़ुमाँ है हक़ीक़त ए जहान थोड़ी है

बुलबुला सा ग़ुमाँ है हक़ीक़त ए जहान थोड़ी है
किरदाऱ नकली ये असल मै इंसान थोड़ी हैं II
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बहक जाते हैं ये जिधऱ का रुख़ हवा का हो
नहीं मजहब जमीर इनका कोई ज़ुबान थोड़ी हैं II
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ये हुस्न जवानी,रुतबे,शौहरत कुछ पलों के
कि रहेंगे ये उम्रभर ज़िंदा कोई ग़ुमान थोड़ी है II
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वायदे हँसी रातों के याद आएंगे वक़्त बेवक़्त
दौर फ़िर दोहराएगा कि कोई itna महान थोड़ी हैं II
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रहमतें हैं रूह में “दीप” तब तक वफ़ा करेंगे
अरे ख़ुद्दार हैं हम उनकी तरह बेजान थोड़ी है II
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©कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”

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