✨आंख की कहानी✨
✨आंख की कहानी✨
✍🏼 रचनाकार – शाहबाज आलम “शाज़”
एक दिन दाहिनी आंख में दर्द उतर आया,
बैटरी का पानी जैसे नश्तर बन छाया।
धुंधला-धुंधला सब दिखने लगा,
मन में अंधेरा, दिल डरने लगा।
परेशान था मैं, क्या करूं समझ न पाया,
तभी मित्र ने कहा — “नेपाल चला जाओ!”
उसकी बात मानी, मित्र के साथ निकला,
उम्मीद की डोरी थामे चला ।
पर सफर था मुश्किल, राहें थी थमी,
ट्रेन छूटी — किस्मत भी थी ग़मी।
साहिबगंज की गंगा की लहरों से पार उतर आया,
नाव के सहारे मंज़िल तक गया।
आख़िर नेपाल में इलाज हो गया,
नूर फिर आंखों का लौट आया।
सोचा अब सब अच्छा है, सब ठीक,
पर किस्मत ने फिर की एक सीख।
दूसरी आंख में वही हादसा हुआ,
फिर वही दर्द, वही आंसू बहा।
मित्र ने हंसते हुए कहा — “ड्रॉप वही लगा लो,
खुद पे यक़ीन रखो, डर हटा लो।”
मैंने लगाया अल्लाह के रहम से— चमत्कार हो गया,
नूर दोनों आंखों में फिर चमक गया।
अब जब आईने में खुद को देखता हूं,
उस सफर की कहानी याद करता हूं।
ज़िन्दगी ने सिखाया — सब्र का हुनर,
अंधेरे के बाद ही आता है सवेर।
शाहबाज आलम शाज़ युवा कवि स्वरचित रचनाकार सिदो कान्हू क्रांति भूमि बरहेट सनमनी निवासी