अश्क के सैलाब में है, मुस्कुराने की रिआयत।
अश्क के सैलाब में है, मुस्कुराने की रिआयत।
है अँधेरी रात में भी , जगमगाने की रिआयत।
तन थका, मुश्किल सफर, है मैं मगर भूला न हूँ यह।
सामने पर्वत खड़े पर, रास्तों की है रिआयत।।
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अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
(📖तरुणाई के तीर)