सी. ए. वी. विद्यालय
मनीषियों, क्रांतिकारियों तथा प्रबुद्ध जनमानस से भरी पावन पुनीत तपोस्थली प्रयागराज (इलाहाबाद) केवल भारत गणराज्य में ही सीमित नहीं है, अपितु विश्व स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। आज़ादी के इतिहास में प्रयागराज का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह वही पावन भूमि है जहाँ भारद्वाज आश्रम, महर्षि दुर्वासा आश्रम (झूंसी), आनंद भवन, स्वराज भवन जैसे ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल विद्यमान हैं। यह भूमि जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, महामना मदनमोहन मालवीय, हरिवंश राय बच्चन, अमिताभ बच्चन, इंदिरा गांधी, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा जैसी विभूतियों की कर्मस्थली रही है।
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती — इन तीनों पवित्र नदियों के संगम से यह तीर्थराज प्रयाग कहलाता है।
“गंगा बड़ी गोदावरी तीर्थ बड़ा प्रयाग,
सबसे बड़ी अयोध्या जहाँ राम लिए अवतार।”
प्रयागराज चारों ओर से नदियों से घिरा हुआ नगर है। ब्रिटिश शासन से पूर्व यहाँ मुगलों का शासन था, जिनमें सम्राट अकबर ने यमुना तट पर भव्य किले का निर्माण कराया था। यह किला अब भारतीय सेना के अधीन है, जिसे छावनी के रूप में परिवर्तित किया गया है। इसी छावनी क्षेत्र में वटवृक्ष और सरस्वती कूप स्थित हैं। ऐसा कहा जाता है कि माता सीता ने इसी वटवृक्ष की पूजा-अर्चना की थी।
संगम स्थल सिविल लाइन्स बस अड्डे से लगभग 7–8 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है। संगम के पूर्व में झूंसी, पश्चिम में दारागंज एवं कीटगंज तथा दक्षिण में अरैल घाट स्थित हैं। अकबर का यह किला आधा यमुना नदी में बना हुआ है। यहाँ स्थित लेटे हुए बड़े हनुमान जी का मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। जनश्रुतियों के अनुसार जब अकबर ने किला निर्माण हेतु हनुमान जी की प्रतिमा को हटाने का प्रयास किया, तब वह प्रतिमा भूमि के गर्भ में और गहराई तक चली जाती थी। घोड़ों व हाथियों के प्रयास के बाद भी जब प्रतिमा नहीं हटी, तो किला टेढ़ा ही बनवाना पड़ा।
सन् 2004 में मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा जब यहाँ मिंटो पार्क निर्माण का प्रयास हुआ, तब प्रतिमा को हटाने के लिए मशीनें लगाई गईं, परंतु लोहे की जंजीरें टूट गईं। अंततः आदेश स्थगित कर पुनः मंदिर निर्माण का निर्णय लिया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि वर्ष में एक बार गंगा माता स्वयं आकर पवनपुत्र हनुमान जी का स्नान कराती हैं।
प्रशासनिक एवं शैक्षिक महत्त्व-
प्रयागराज प्रशासनिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश की रीढ़ कहा जाता है। यहाँ प्रदेश का उच्च न्यायालय स्थित है तथा इसका खंडपीठ लखनऊ में है। माध्यमिक शिक्षा परिषद, प्रयागराज भी यहीं स्थापित है। प्रयागराज को शिक्षा का गढ़ कहा जाता है और इसे “आईएएस–पीसीएस की मशीन” भी कहा जाता है। यहाँ तीन प्रमुख विश्वविद्यालय हैं — प्रयागराज विश्वविद्यालय, राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय और कृषि विश्वविद्यालय, नैनी। प्रयागराज विश्वविद्यालय की साइंस और आर्ट्स संकाय विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
“इश्क है इलाहाबाद किताबों में यहाँ मिलता है।
गुलशन के सूखे पुष्प आई.ए.एस.–पी.सी.एस. बनके यहाँ खिलता है।”
क्रांतिकारियों की भूमि-
प्रयागराज के क्रांति स्थलों में प्रमुख है चंद्रशेखर आजाद पार्क (पूर्व नाम — अल्फ्रेड पार्क, कंपनी बाग)। सन् 1870 में प्रिंस अल्फ्रेड की यात्रा की स्मृति में 133 एकड़ क्षेत्र में निर्मित यह पार्क प्रयागराज का सबसे बड़ा सार्वजनिक उपवन है। यहीं पर महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने वीरगति प्राप्त की थी। आज भी यह स्थल युवाओं में देशभक्ति और आत्मविश्वास का संचार करता है।
“वृक्ष तना भी रोए होंगे चंद्रशेखर बलिदानी पर,
युवा संघ में जोश उमड़ता अल्फ्रेड पार्क की कहानी पर।”
सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज प्रयागराज-
सिविल लाइन्स, एम.जी. मार्ग पर स्थित सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज प्रयागराज (इलाहाबाद) शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नाम है। यह जिला प्रयागराज के पाँच प्रमुख विद्यालयों — राजकीय इंटर कॉलेज, सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज, डी.ए.वी. इंटर कॉलेज, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज और एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज — में सम्मिलित है।
सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज का पूरा नाम सिटी एंग्लो वर्नाकुलर इंटरमीडिएट कॉलेज प्रयागराज (इलाहाबाद) है। प्रारंभ में विद्यालय का कोई भवन नहीं था। भूमि सर सुंदरलाल जी ने मात्र ₹2 में विद्यालय को दान दी थी। इस विद्यालय की स्थापना में न्यायमूर्ति, स्वर्गीय पं. मदनमोहन मालवीय जी सहित कई मनीषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। पं. मालवीय जी इसके प्रथम अध्यक्ष थे।
पूर्व में यहाँ केवल बालक शिक्षा प्राप्त करते थे, परंतु 2021 से बालिकाओं को भी प्रवेश की अनुमति दी गई, जो अत्यंत हर्ष का विषय है। विद्यालय में कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा व्यवस्था है। विज्ञान, साहित्य, एन.सी.सी. और खेलकूद विभाग यहाँ सक्रिय रूप से संचालित हैं। वर्तमान में प्रधानाचार्य माननीय डॉ. त्रिभुवन प्रसाद त्रिपाठी जी हैं।
विद्यालय का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में एम.जी. मार्ग पर खुलता है। प्रवेश करते ही दाईं ओर भोजनालय तथा बाईं ओर शहीद रमेश मालवीय उद्यान स्थित है। इसके सामने विद्यालय का मुख्य भवन है, जो सन् 1932 में निर्मित हुआ था। यह लाल रंग का विशाल भवन है, जिसमें लगभग 500 लोगों के बैठने की क्षमता वाला हॉल, प्रधानाचार्य कक्ष, कार्यालय, शिक्षकों का विश्राम कक्ष और लगभग 25 कक्षाएँ हैं। पूर्व दिशा में स्थित नया भवन (निर्माण 1965) में प्रयोगशालाएँ, पुस्तकालय, एन.सी.सी. कार्यालय और कक्षाएँ हैं। पुस्तकालय के सामने लगभग 400 साइकिलों की क्षमता वाला साइकिल स्टैंड है। भवन के पीछे बड़ा खेल मैदान और सांस्कृतिक मंच भी निर्मित है। प्रार्थना स्थल पर प्रतिदिन विद्यार्थी प्रातः प्रार्थना एवं राष्ट्रगान के साथ दिन की शुरुआत करते हैं।
“वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ,
परसेवा पर उपकार में हम, जग जीवन सफल बनाएँ।”
अनुशासन और प्रेरणा –
सन् 2011 में मैंने विज्ञान वर्ग में प्रवेश लिया और 2013 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। उस समय प्रधानाचार्य माननीय डॉ. भगवत सिंह जी थे — अत्यंत अनुशासनप्रिय, नियमबद्ध और सशक्त प्रशासक। वे स्वयं कक्षाओं का निरीक्षण करते, उपस्थिति जाँचते और विद्यार्थियों के अनुशासन पर ध्यान देते थे। उन्होंने विद्यालय को एक संगठित परिवार के रूप में स्थापित किया।
मैं डॉ. भगवत सिंह जी एवं सभी शिक्षकों का आभारी हूँ, जिनकी प्रेरणा से बिना किसी कोचिंग के प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त कर सका।
विद्यालय के शिक्षक — भौतिक विज्ञान के मिश्रा जी, शत्रुघ्न जी, रसायन के शर्मा जी, अंग्रेज़ी के नरेश जी, हिंदी के त्रिपाठी जी आदि — निरंतर उत्कृष्ट शिक्षण कार्य कर रहे हैं। एक प्रेरक उदाहरण यह है कि भौतिक प्रयोगात्मक परीक्षा में असफल रहने वाले एक छात्र ने बाद में विदेश जाकर वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठा पाई। उन्होंने विद्यालय को ₹2 लाख का अनुदान दिया ताकि अन्य विद्यार्थियों को संसाधनों की कमी न झेलनी पड़े।
देशभक्ति की परंपरा-
सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज ने स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया है। इस विद्यालय के छात्र शहीद रमेश मालवीय जी मात्र 14 वर्ष की आयु में 12 अगस्त 1942 को अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलन में वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने चौक क्षेत्र में ब्रिटिश सैनिक पर ईंट का टुकड़ा फेंका, जिसके बाद गोली मार दी गई और वे वहीं शहीद हो गए। विद्यालय परिसर में उनका स्मारक आज भी विद्यार्थियों को देशप्रेम की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष-
सी.ए.वी. इंटरमीडिएट कॉलेज प्रयागराज केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि ज्ञान, अनुशासन, संस्कार और देशभक्ति का पवित्र मंदिर है। यहाँ से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रहे हैं। कोई वैज्ञानिक, कोई प्रशासक, कोई इंजीनियर, पत्रकार या शिक्षाविद बनकर राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
क्रान्ति ज्वाला जोश लिए, प्रेरणा स्रोत धारणी
मनीषियों से पुष्प लिए, विद्या प्रकाश चारणी
सी. ए. वी. प्रांगण, उद्घोष जय विजय प्रमाण हैं
साहित्य सेवा ज्ञान ज्योति, जागृति जय गान हैं
प्रबुद्ध गुरु ज्ञान से, मिले सदा सुरेश्वरी
नित्य नव प्रसून खिले, ज्योति ज्ञानेश्वरी
सी. ए. वी. की स्तुति, ब्रह्मणेश्वरी देवेश्वरी
वन्दनी वन्दनी प्रणाम अंतः स्थल वागेश्वरी
स-शक्त सदा बनाया, छात्र के उद्देश्य को
दृढ़ता संयम प्रदान हुए, छात्र मन ध्येय को
प्रमाणित सपथ ग्रहण करते, नवीन भविष्य को
आशीष सदा देते गुरुवर, मेधावी गण शिष्य को