Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 Oct 2025 · 1 min read

कुण्डलिया

!! श्रीं!!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
🙏
ललचाना मन व्यर्थ है, मत करना यह भूल।
लालच होती है बला, सदा उगाये शूल।।
सदा उगाये शूल, जाल में जो फँस जाता।
खा जाता है मार, उबर फिर कभी न पाता।।
कहे ‘ज्योति’ समझाय, अरे मन ! ,फँस मत जाना।
भूले से भी कभी, नहीं तू मन ललचाना ।।
***
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा।
🌷🌷🌷

Loading...