कुण्डलिया
!! श्रीं!!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
🙏
ललचाना मन व्यर्थ है, मत करना यह भूल।
लालच होती है बला, सदा उगाये शूल।।
सदा उगाये शूल, जाल में जो फँस जाता।
खा जाता है मार, उबर फिर कभी न पाता।।
कहे ‘ज्योति’ समझाय, अरे मन ! ,फँस मत जाना।
भूले से भी कभी, नहीं तू मन ललचाना ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा।
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