मुक्तक
मुक्तक
———–
दाग तन का हटाया, हटा ही नहीं।
शून्य को था घटाया, घटा ही नहीं।
दीप हमने बहुत थे, जलाए मगर।
मन में छाया अंधेरा, मिटा ही नहीं।।
~ राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)
मुक्तक
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दाग तन का हटाया, हटा ही नहीं।
शून्य को था घटाया, घटा ही नहीं।
दीप हमने बहुत थे, जलाए मगर।
मन में छाया अंधेरा, मिटा ही नहीं।।
~ राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)