रण पर श्री रघुनंदन राम
प्रकांड पंडित वेदों का ज्ञाता, अपने समय का था विद्वान
तप में बल में कीर्ति यश में, त्रिलोक विजेता था महान
दृढ़ तपस्वी सिर काट-काट, प्रसन्न किया भोला भगवान
प्रकट हुए भोले भंडारी , मांगा फिर उनसे वरदान
नर को तज, पर जीवों से, ना हो उनको कोई नुकसान
सोने की लंका का था राजा, घेरा जब उसको अभिमान
नहीं सहन हुआ जब उनको ,अपनी ही बहन का अपमान
भान नहीं, ज्ञान नहीं, विस्मृत हुआ उनका सब ज्ञान
जाकर पंचवटी हर लाया, जगमाता को अबला जान
नष्ट हुआ वैभव सारा, लंका जल हुआ राख समान
बरज नहीं किसी का माना ,दर्प चढ़ा जब परवान
मार निकाला सगे भ्राता को ,जिसने अपना बैरी जान
पर नारी की आश में, भूले स्वनारी का जो सम्मान
लगे डूबने कुल-कुटुंब, मरने लगे सेना संतान
खुली नींद जब कुंभकरण की ,देने पहुंचा अग्रज को ज्ञान
नहीं समझ तब भी आया ,मर गये जब कुंभकर्ण पहलवान
समर भूमि, सोने की लंका का राजा ,और उधर श्री भगवान
लंका के राजा की जय इधर गूँजते , उधर गूँजते जय जय श्री राम
सर से, सर-सर दश सर को , काटे रावण के , रण पर श्री रघुनंदन राम
बीस बाहु, बीस बाण से बिलगे, नाभि में आखिरी अग्नि बाण
करूणा सागर की किरपा से, हुआ रावण को तब आत्मज्ञान
लगे तजने जब दम दसकंधर, मुख से बोले तब हे राम !
यश-बल,धन-वैभव,पद सब में , नहीं ज्ञान में तू मुझसा महान
तू जीता मैं हारा फिर भी, नहीं भ्राता मेरा लखन समान
कहें राम तब अनुज लखन से जाओ सुनो दशानन का ज्ञान
सुने वचन लखन रावण केे, व्यर्थ में सारे दर्प अभिमान
तज सारे अशुभ कर्माें को, देर न करे कोई शुभ काम
शत्रु तुच्छ न जानिए, छोटा हो चाहे सुई समान
दे उपदेश लंकेश लखन को , प्रभु कर पाई परम सुख धाम
तब से अब तक इस जग में चर्चित , रामायण में श्री राजा राम
हाथ उठाकर आओ सब बोले ! जय श्री राम, जय जय श्री राम!
अखिल ब्रम्हांड नायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।।
लिखेश्वर साहू
ग्राम – सौंगा,पोस्ट – गिरौद
तह. -मगरलोड, जिला -धमतरी (छ.ग.)