मन के रावण पर विजय का संकल्प
मन के रावण पर विजय का संकल्प
दशहरा केवल रावण के पुतले जलाने का उत्सव नहीं है। यह उस भीतर के रावण यानी असत्य, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, वासना, अन्याय और अहंकार आदि को पहचानने और परास्त करने का पावन अवसर है। हर मनुष्य के हृदय में कोई न कोई रावण छिपा होता है। कभी वह झूठ बनकर सामने आता है, कभी लालच और कभी अहंकार बनकर।
रामचरितमानस में कहा गया है “सकल दोष समुल्लंघि, सकल पाप विनाशक। राम नाम हृदय धरि, सुख समृद्धि निरंतर पावक।” यानि जो व्यक्ति अपने हृदय में राम का नाम धारण करता है, वह अपने भीतर के सभी दोष और पापों को नष्ट कर देता है और जीवन में शांति, सुख और समृद्धि अनुभव करता है।
आत्म सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
👉 अपनी झूठी उपलब्धियों का गुणगान करना और दूसरों को भ्रमित करना भीतर के रावण की पहचान है। सत्य को स्वीकार करना ही वास्तविक पराक्रम है।
👉 पहला कदम है आत्म-मंथन। जैसे समुद्र-मंथन से अमृत निकला, वैसे ही आत्म-मंथन से सत्य का अमृत मिलता है। सज्जनों की सलाह नम्रता से स्वीकार करना भी इसमें मदद करता है।
👉 दूसरों पर विजय क्षणिक होती है, पर स्वयं पर विजय शाश्वत है। यही धर्म का मूल है।
👉 संविधान और समानता के सिद्धांतों को अपनाते हुए किसी भी भेदभाव के बिना व्यवहार करना आत्म-विजय का हिस्सा है।
# संकल्प:
इस दशहरा पर हम संकल्प लें, भीतर के असत्य को जलाएँ, झूठ और अहंकार त्यागें, और सत्य, करुणा, धर्म और समानता को अपने जीवन में स्थापित करें। यही वास्तविक रावण दहन है, यही आत्म-विजय का मार्ग है।
आप और आपके परिवार को सत्य, धर्म और आत्म-सुधार की विजय का प्रेरणादायी पर्व दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।