माँ कालरात्रि
लेके कर में कटार, करे दैत्यों का संहार।
दुष्ट पापी राक्षसों का, पीती रक्त प्याला है।
काले घुँघराले बाल, क्रोध नेत्र लाल-लाल।
तीव्र अट्टहास करे,उर अग्नि ज्वाला है।
काला वस्त्र तन सोहे, रूप मातु मन मोहे।
काल की कराली हाथ, खप्पर निराला है।
होके असुरों पे क्रुद्ध,कर रहीं मातु युद्ध।
काट शीश असुरों का,मर्दि भूमि डाला है।।
करे जग रखवाली,मेरी माँ खप्पर वाली।
करुणामई काली का,हृदय विशाला है।
काल की भी जो हैं काल, रौद्र रूप विकराल।
खुले घुँघराले बाल,गल मुण्ड माला है।
शत्रु हेतु तीक्ष्ण तीर,भक्त हेतु गंग नीर।
मातु की कृपा से खुले, नियति का ताला है।
रात दिन आठों याम,जपो बस मातु नाम।
काली जी का मंत्र जाप,मोक्ष देने वाला है।।
जो भी आते दरबार,माता सुनतीं पुकार।
दास प्रार्थना को कभी,मैया ने न टाला है।
हर, हर पीर लेतीं,बल बुद्धि ज्ञान देतीं।
आदिशक्ति रूप काली, विकट कराला है।
मातु दर जो भी आए,भरकर झोली जाए।
मिलें बाँझ नारि सुत,भूखे को निवाला है।
सातवाँ दुर्गा का रूप, रौद्री रूप अति अनूप।
रक्तबीज मार किया, सृष्टि में उजाला है।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)