समावेशी मैथिली।
समावेशी मैथिली।
-आचार्य रामानंद मंडल।
मिथिला के भाषा मैथिली के विस्तार आ प्राथमिक शिक्षा मे मातृभाषा मैथिली के अनिवार्यता के महसूस करैत मैथिली के मानकीकरण के आवश्यकता जान पडैय हय। मैथिली के शब्द आ वर्तनी के मानकीकरण।
मैथिली मुख्यतः केन्द्रीय मैथिली, दक्षिणी मैथिली (अंगिका),पश्चिमी मैथिली (बज्जिका) आ खोरठा आदि मे विभक्त हय। चारू शैली के शब्द आ वर्तनी मे अंतर पायल जाइत हय।
अतीत के मैथिली ब्याकरण सर्वसम्मति मे न हय।
मैथिली के व्याकरणाचार्य मे मतभिन्नता हय।इंहा तक कि पहिले एगो मैथिली अखबार मिथिला मिहिर के भाषा के मानक मानल जाय।वोइ मे एगो विद्वान रमानाथ झा के मानक के छूट देके हुनकर रचना प्रकाशित कैल जय।
मैथिली मानकीकरण के खास गुट संस्कृतनिष्ठ मैथिली मानकीकरण पर जोर देइत हतन।खास के सोतिपुरा वा केन्द्रीय मैथिली के मानक बनाबै चाहेत हतन।सोतिपुरा अर्थात श्रोतिय ब्राह्मण के मैथिली बोली।
वर्तमान स्थिति मे मिथिला के मूल मैथिली वा गैर बाभन कायथ के विशाल जनसमूह के मैथिली मूल धारा से बंचित हो जाइत हय। मैथिली के विभिन्न शैली के समायोजन वा एक्कीकरण आवश्यक हय। कुछ उदाहरण –
शब्द -केन्द्रीय रूप -पश्चमी मैथिली
अमरूद-लताम—अमधुर
आंवला -धातृ—–औरा
सहायक क्रिया
अछि,अइछ,छल,छलि छलाह,थिक,थिका,थिकैक,
आदि के प्रयोग पश्चिमी मैथिली मे न होइ हय।
वर्तनी –
मानक मे ष,ण,ऋ के प्रयोग पश्चिमी शैली मे प्रयोग न होइ हय।
इ सभ विभिन्नता के समायोजन वा पर्यायवाची करे के आवश्यकता हय।या विभिन्न शैली के मैथिली मे स्वीकार क लेल जाय।संसार मे बहुत भाषा के विभिन्न शैली के अपना लेल गेल हय। ब्रिटिश अंग्रेजी आ अमेरिकन अंग्रेजी एकर सोदाहरण हय।
निष्कर्षत: मैथिली के विकास आ विस्तार के लेल विभिन्न शैली के समावेशन के आवश्यकता हय। आधुनिक युग मे प्राथमिक शिक्षा के लेल समावेशी मैथिली के आवश्यकता हय।
-आचार्य रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।