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25 Sep 2025 · 2 min read

मिथिला के दरबारी कवि।

मिथिला के दरबारी कवि।
-आचार्य रामानंद मंडल।
मिथिला के कवि विद्यापति के चर्चा के क्रम मे जौं जोतिश्वर (१२९०-१३५०) वर्णरत्नाकर मे अंकित विदापत नाच के जनक आदि कवि विद्यापति नाई के चर्चा फेसबुक पर भेल।कवि विद्यापति नाई के चर्चा कश्मीर के विद्वान अभिनव गुप्त (दशम शताब्दी के अंत आ एगारहम शताब्दी के प्रारंभ) -ईश्वर प्रत्याभिज्ञा -विभर्षणी ग्रंथ मे कैले हतन। श्रीधर दास के सदयुक्तिकर्णामृत मे विद्यापति के पांचटा पद के उद्धृत कैलै हतन जे विद्यापति के पदावली के भाषा हय।
अइ पोस्ट के पं शशिनाथ झा विरोध करैत कमेंट कैलन कि कवि विद्यापति (१३५२-१४४८) १४वी शताब्दी मे भेलन।बाद मे पुनः: पोस्ट कैलन कि १२००ई मे खौआलक वंश में मूल प्रजापति के पुत्र विद्यापति भेल रहय।जेकर चर्चा श्रीधर दास के सदयुक्तिकर्णामृत मे हय।परंच कवि विद्यापति के नाई होय अनुत्तरित रह गेल।परंच नाच परंपरा के आधार पर पूर्वकालीन आदि कवि विद्यापति नाई प्रमाणित होइ हय।कारण बाभन के नाच करैय के परंपरा न हय।
आब मिथिला राज के दरबारी कवि के जानकारी के लेल फेसबुक पोस्ट कैल गेल हय। अभी तक के जानकारी के आधार पर प्रथम दरबारी कवि के रूप कवि विद्यापति के नाम प्रसिद्ध हय।जे राजा कीर्ति सिंह आ राजा शिव सिंह के दरबारी कवि रहलन। हुनकर कीर्ति लता आ कीर्ति पताका वा कीर्ति पारिजात पोथी मुख्य हय। कीर्ति पारिजात अनुपलब्ध हय।दोसर नाम लाल दास हय। जे राजा रमेश्वर सिंह के दरबारी कवि रहलन।आ रमेश्वर चरित मिथिला रामायण लिखलन। साहित्यकार भीम नाथ झा कृत परिचायिका के आधार पर तेसर गोविन्द दास दरबारी कवि कहल जायत हय।जे राजा कंस नारायण सिंह के दरबारी कवि रहलन।आब मिथिला राज कर्णाट वंश,ओइनवार आ खंडवला वंश मिला के लगभग ८००वर्ष रहल।एते लंबा कालखंड मे कि केवल तीनेटा दरबारी कवि भेलन। मैथिली साहित्य मे दरबारी कवि आ दरबारी वा विरुद साहित्य के शोध के आवश्यकता हय।
-आचार्य रामानंद मंडल सीतामढ़ी।

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