मनहरण घनाक्षरी
‘वीर सपूत’
मातृ भूमि का सपूत, शत्रु का वो काल दूत,
हाथ प्राण साथ लिए, वायु पे सवार है।
विजय गीत गान है, दूर तक उड़ान है,
काम हर महान है, वार को तैयार है।
तन में भारी जोश है, रण का जयघोष है,
अरि के लिए रोष है, चेतना अगार है।
तेज तुरंग चाल है, रुधिर में उबाल है,
वक्ष बहु विशाल है, शत्रु जार-जार है।।
चमचमाता भाल है, सीमा पर वो ढाल है,
अरि के लिए जाल है, दृष्टि आर-पार है।
चल पड़े रुके नहीं, शत्रु सम झुके नहीं,
तूफान में बुझे नहीं, चंड वार धार है।
तिरंगा आन बान है, प्रेम रस वितान है,
काम हर महान है, देश की कटार है।
देश प्रेम की लगन, वीर तुझे है नमन,
शत्रु का करे दमन, तेरी जयकार है।।
-गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड
‘शिव से संसार’
शिव सा नहीं है कोई, दुनिया उसी ने बोई,
औघड़ दानी महान, प्राण का आधार है।
कैलाश शिखर पर, मौन धर तप कर,
काम किया तप भंग, वह काम मार है।
नाग हार कंठ डाल, सोहे वक्ष मुंड माल,
भाल पे विराजे शशि, तन मली खार है।
डम डमरू निनाद, हुआ दक्ष से विवाद,
जान पाया नहीं दक्ष, जलता अंगार है।।1।।
होके बैल पे सवार, कर में है शूल धार,
माता सती सदा साथ, वन में विहार है।
बाघ छाल का वसन, कंठ विष की तपन,
सकल भुवन जान, शिव अवतार है।
शंभू मेरा भोला-भाला, जगत का रखवाला,
चढ़ाने से बेल पात, करे बेड़ा पार है।
जप शिव तप शिव, जनम-मरण शिव
दान शिव मान शिव, शिव ही ऊँकार है।।2।।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
-गोदाम्बरी नेगी