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24 Sep 2025 · 1 min read

हर रास्ते में मिलने वाले

हर रास्ते में मिलने वाले
रास्ते के ही हो जाते हैं

दुख दर्द है हमारे मरहम
हमसे लिपट के सो जाते हैं

पंछी जब वापस आता है
सारे कोटर भर जाते हैं

रात बहुत हुई है प्यारे
अब तो हम घर जाते हैं

ऐसे थकते हैं हम यारों
ऐसे सोते मर जाते हैं

नदियों के मृदु पानी को
सागर खारा कर जाते हैं

लोग दर्द देते हैं ऐसे
जीता हारा कर जाते हैं

इतना डूबके तन्हाई में
अंदर से भी भर जाते हैं

देखा है हर मौसम हमने
क्यों यह पत्ते झड़ जाते हैं

विरानी इस दुनिया में
जंगल ही नजर आते हैं

कवि दीपक सरल

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