मुक्तक:- जिंदगी
मुक्तक:- जिंदगी
जिंदगी बदरंग होती जा रही है।
मौन अपने अर्थ खोती जा रही है।
चाहतें औंधे पड़ी बेचारगी में।
रौनकों की रात रोती जा रही है॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी
मुक्तक:- जिंदगी
जिंदगी बदरंग होती जा रही है।
मौन अपने अर्थ खोती जा रही है।
चाहतें औंधे पड़ी बेचारगी में।
रौनकों की रात रोती जा रही है॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी