मुक्तक:- प्रेम की चाह
मुक्तक:- प्रेम की चाह
हर गली हर सड़क हर डगर में बहा।
आह से वाह तक शब्द सारे सहा।
मौन मंजिल घुमाती रही रात दिन।
प्रेम की चाह में दौड़ता नित रहा॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी
मुक्तक:- प्रेम की चाह
हर गली हर सड़क हर डगर में बहा।
आह से वाह तक शब्द सारे सहा।
मौन मंजिल घुमाती रही रात दिन।
प्रेम की चाह में दौड़ता नित रहा॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी