मुक्तक:- प्रेम का मर्म
मुक्तक:- प्रेम का मर्म
शौक या शर्म समझा नहीं आज तक।
कर्म का धर्म समझा नहीं आज तक।
दौड़ता नित रहा चाह की राह में।
प्रेम का मर्म समझा नहीं आज तक॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी
मुक्तक:- प्रेम का मर्म
शौक या शर्म समझा नहीं आज तक।
कर्म का धर्म समझा नहीं आज तक।
दौड़ता नित रहा चाह की राह में।
प्रेम का मर्म समझा नहीं आज तक॥
©दिनेश कुशभुवनपुरी