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14 Sep 2025 · 3 min read

होली या हो ली

होली या हो ली

भारत त्योहारों की पावन स्थली है। हम भारतीयों की रग-रग में त्यौहार रचे-बसे हैं. त्यौहारों की श्रृंखला
में होलिका उत्सव अपना अलग ही स्थान रखता है। अमीर हो या गरीब हर कोई बस रंगों में डूब जाता है।
माघ पूर्णिमा के दिन होली का डांडा (डंडा) गाड़ दिया जाता है। घरों में गोबर के भरोलिये(बड़े के आकार के) बना कर उन्हें सुखा लिया जाता है। फ़िर उनकी माला बनाई जाती है, होली पर चढ़ाने के लिए। होलिका-दहन के लिए लकड़ी-कंडे इकट्ठे किए जाते हैं। चुराने का भी दस्तूर बन गया है। चंदा वसूली करने में भी बच्चा पार्टी जुट जाती है। उपासी सुहागिनें संध्या समय ठंडे दीये, नारियल, प्रसाद आदि से होलिका-पूजन करती हैं। देर रात दहन होता है। गेहूँ की हरी बालियाँ पावन अग्नि में सेक कर नए गेहूँ का शुभारंभ करते हैं।
सुबह होली की अग्नि से ही एक ज़माने में चूल्हें जलाए जाते थे। दूसरे दिन होली को ठंडा भी किया जाता है।
दहकती होली को तापना भी शुभ माना जाता है। जो भी अपनी बुरी आदतें छोड़ना चाहते हैं, वे अपनी इच्छा चिट्ठी में लिख कर होली में जला कर सुधरने का प्रण लेते हैं। दूसरे दिन सब लोग रंग-गुलाल में सरोबार हो खुशियाँ मनाते हैं, मिलते-जुलते हैं व गुजिया पपड़ी मिल-जुल कर खाते हैं।
अब बात करते हैं… हो ली अर्थात जो हो चुका अथवा जो बीत चुका है। इस शब्द में गूढ़ अर्थ समाया है। साथ ही परस्पर प्रेम से जीवन जीने का सूत्र भी है ये।
भूतकाल की बातें भूत के समान हैं और भविष्य अनिश्चित। वर्तमान ही सच्चाई है। फ़िर क्यूँ न वर्तमान में ही जीए ? जो बीत गया वह लौट कर आने से रहा। उस पर माटी डाल कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। नए सिरे से एक नई शुरुवात करें। क्यों, क्या, कैसे, कौन, कहाँ इन प्रश्न-चिन्हों को मिटा कर पूर्ण विराम लगा दें… अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़े, चिंता को चिंतन में बदल दें, ईर्ष्या, द्वेष, बैर, नफ़रत व बदले की भावना आदि विकारों की जगह प्रेम, सहयोग, शांति तथा भाईचारा को अपनाएँ। यह तभी सम्भव होगा जब हो ली को होली के रंगबिरंगे रंगों से बहा दें।

क्यूँ न ऐसे होली मनाएँ

होली मनाओ उत्साह उमंगों के संग
आओ उड़ाए आज प्रेम के रंगीले रंग
बैर घृणा दुष्टता ये सब हैं काले रंग
आपस में दुश्मनी अच्छे नहीं हैं ढंग

काम क्रोध लोभ मोह
जलाओ विकारों की होली
डगर लाल, चूनर लाल
गगन में गुलाल री
स्नेह डोर बाँधो देखो
ये तो गाड़ा रंग री

खेत हरे खूब भरे
फूलों से लदी डाली
कर शुभकामना
किसको न दे तू गाली
छोड़ो तकरार अब
भूल जाओ जो हो ली
हरी भरी भू पर
खेलो हरियाली होली

फाल्गुनी पलाश फूले
महके बलिदानी बोल
चंदन पिचकारी भर
केसरिया रंग घोल
नाचे और गाएँ
बाजे नगाड़ा ढोल
वीरों के देस में
बासंती होली खेल

हिंसा की धूम मची
खून की न होली खेल
सत्य और अहिंसा से
आतंक को दे धकेल
लाल गुलाबी पीला
प्यारे से रंग घोल
बापू के देश में
शान्ति से होली खेल

सरला मेहता
इंदौर

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