करें...एक बीज का रोपण
करें…एक बीज का रोपण
संसार में प्रदूषण बड़ी त्वरित गति से अपने पैर पैसार रहा है। पर्यावरण को बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने होंगे। वरना एक दिन ऐसा आएगा कि आने वाली पीढ़ियों कों कृत्रिम साधनों पर निर्भर रहना होगा।
वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है बीज बोकर पेड़ उगाना या कहीं और से पौधे लाकर रोपना। यह मान्यता रही है कि प्रकृति और हमारे बीच लेन-देन बराबर होना चाहिए। जितना हमें मिल रहा है उतना हमें लौटाना भी चाहिए। वृक्ष हमें देते ही हैं। हमारा भी कर्तव्य है कि हम भी उनकी संख्या बढ़ाए। मात्र रोपण ही हमारा कर्तव्य नहीं है। एक बच्चे की भाँति पौधों की देखभाल करें। एक नारी की सुंदरता विभिन्न प्रसाधनों से द्विगुणित हो जाती है। वैसे ही धरती का श्रृंगार है हरियाली। फिर वो चाहे लहलहाती फसल हो या इठलाते पेड़ पौधे। यह वृक्षारोपण से ही सम्भव है।
इतिहास साक्षी है कि भारतीय वैदिक युग में वृक्षों को देवों का दर्जा दिया गया था । उनकी पूजा होती रही है।
धार्मिक उपवास पूजन में भी वृक्षों को उच्च स्थान प्राप्त है। यूँ भी नियमित पाठ-पूजा में तुलसी पीपल बरगद आँवला को जल चढ़ाया जाता है। प्रभु स्नान का जल किसी भी पेड़ को अर्पित होता है।आजकल किसी उत्सव उद्घाटन या किसी की स्मृति में वृक्षारोपण कार्यक्रम का अहम हिस्सा बन गया है। उपहार में भी सजे हुए पौधे भेट किए जाते हैं।
सन 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने विश्व स्तर पर वृक्षारोपण के प्रति जागरुकता लाने हेतु पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया। और 5 जून 2020 के रूप में मनाया जाने लगा।
हरियाली की सीमा बधानी होगी। कहते हैं धरती व आकाश के बीच कोई जीवनरक्षक हैं तो वे हैंं हमें सलाम करते पेड़।
एक कहानी है न, बचपन में झूले झुलाने से लेकर अंतिम समय में निष्प्राण देह को मुक्ति दिलाने वाला पेड़ ही है।
**वृक्ष हैं प्राणवायु के कारखाने। मनुष्य व उसके कार्यों द्वारा छोड़ी गई जहरीली गेस ये ग्रहण कर लेते हैं। इस तरह प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
**पेड़ पौधे हैं तो वन उपवन व जंगल हैं।
**परिंदों को नीड़ , जानवरों को आसरा व इंसानों को भी कई उपयोगी चीजें वृक्षों से मिलती हैं।
**प्राणी मात्र की उदर पूर्ति के साधन भी ये ही देते हैं।
**कई बहुमूल्य उपयोगी जड़ीबुटियाँ का भंडार हैं जंगल।
**ये बादलों को आकर्षित कर भरपूर वर्षा लाते हैं
**वृक्षों के कारण बारिश का जल व्यर्थ ना बहकर धरती में समा जाता है। इससे जल स्तर बढ़ता है
**बाढ़ पर भी नियंत्रण होता है।
**वृक्षों की जड़े भूमि का कटाव रोकती हैं। अतः रेगिस्तान नहीं बन पाते हैं।
**वातावरण को सुहाना बनाते हैं। ये शांति स्थल बन ध्रुव व बुद्ध से योगियों को ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरित करते हैं।
संकट में क्यों है पर्यावरण?
विकास व उद्योगों के नाम पर वृक्षों की कटाई हो रही है। एक समय घर वृक्षों से घिरे होते थे। अब कच्चे आंगन व पिछवाडे की जगह सीमेंटेड कारिडोर रह गए हैं। बोनसाई पेड़ों का जमाना आ गया है।
कृत्रिम सजावटी सामान शान की बात हो गई है।
जंगल माफिया के सक्रिय होने से अंधाधुंध कटाई हो रही है।
सरकारी योजनाओं के अंतर्गत पौधे लगाए जाते हैं। किंतु पर्याप्त सिचाई व देखभाल के अभाव में
कागजी खानापूर्ति ही होकर रह जाती है।
हरियाली बचाने की दिशा में सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए:—
वन महोत्सव, एक जन एक वृक्ष, चिपको आंदोलन जैसे आयोजन प्रारंभ करना चाहिए। वृक्षमित्र जैसे पुरस्कारों की घोषणा की जाए।
फॉरेस्ट विभाग को अवैध कटाई पर सख्त से सख्त कार्यवाही करना चाहिए।
उपहार में पौधों का दिया जाना बढ़ाना चाहिए।
सरकार के साथ समाज व अन्य संस्थाओं का भी दायित्व है।
वृक्ष है तो जल है, जल है तो जीवन है और हम हैं।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित