मेरे घर घूमने आओगी क्या?
मेरे घर घूमने आओगी क्या?
ये माथा चूमने आओगी क्या?
बगीचे में वही झूला पड़ा है,
बताओ, झूलने आओगी क्या?
मेरी तस्वीर हर दिन घूरती हो,
मुझे भी घूरने आओगी क्या?
तुम्हारे हिज्र में बीमार हूँ मैं,
पता कुछ पूछने आओगी क्या?
क़िताबों के गुलाबों की महक को,
कभी तुम सूँघने आओगी क्या?
लुटाया है बहुत ही नेह तुम पर,
अभी कुछ लूटने आओगी क्या?
मेरे कमरे में भूली हो बहुत कुछ,
यहाँ अब भूलने आओगी क्या?
राजेश पाली ‘सर्वप्रिय’