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9 Sep 2025 · 2 min read

#तेवरी..(देसी ग़ज़ल)

#तेवरी..(देसी ग़ज़ल)
■ भेड़-भेड़िए वाला प्यार।।
●(प्रणय प्रभात)●

* सब बेमानी सब में सार, छोडो यार!
एक बात के अर्थ हज़ार, छोड़ो यार!!

* कितनी खाई कितने खंदक खोदोगे?
चीख रही है नई दरार, छोड़ो यार!!

* तीखापन लहजे में अच्छी बात नहीं।
चाकू-छुरियों जैसी धार, छोड़ो यार!!

* कारोबारी से लेकर सैलानी तक।
इस मेले में सब बटमार, छोड़ो यार!!

* सब पटेल हैं सभी चौधरी कस्बे में।
घर-घर में हैं मनसबदार, छोड़ो यार!!

* चार लोग हैं घर के चारों कोनों में।
खाक़ मज़ा देगा त्यौहार, छोड़ो यार!!

* कोई मुहब्बत में तो कोई नफ़रत में।
सारे ज़हनों से बीमार, छोड़ो यार!!

*पुट्ठों के बल बैठे हैं लाचार बने।
बचा न कोई पायेदार, छोड़ो यार!!

* चार दिनों का सारा जादू चमड़ी का।
भेड़-भेड़िए वाला प्यार, छोड़ो यार!!

* कौन लगे लाइन में धक्के खाने को।
सौ रोगी हैं एक अनार, छोड़ो यार!!

* जड़ से लेकर टहनी पत्तों शाखों तक।
सब के सब हैं खरपतवार, छोड़ो यार!!

* ठूंस चुके अब औरों को चुग लेने दो।
बार-बार जूतम-पैजार, छोड़ो यार!!

* कोठी-बंगले गाड़ी-घोड़े किश्तों पर।
सांसें मिलती नहीं उधार, छोड़ो यार!!

* अगली दस पीढ़ी का बंदोबस्त हुआ।
भिंचे गले में फंसी डकार, छोड़ो यार!!

* पीछे देखो हाथ बांध कर लाख खड़े।
तुम ही नहीं अलमबरदार, छोड़ो यार!!

* राम बिचारे फिर केवट को ढूंढ रहे।
अब नैया मत राम भरोसे, छोड़ो यार!!

* क्या कर लेगी पत्थर वाली बस्ती में।
शीशे वाली हर दीवार, छोड़ो यार!!

* आओ, हम-तुम मिल के दरबारी गाएं।
इस मौसम में राग़-मल्हार, छोड़ो यार!!

* बाहर घण्टा जहांगीर का टँगा मगर।
अंदर तुगलक का दरबार, छोड़ो यार!!

*जीभ गुलाबी है क्यूं काली करें उसे।
सब अच्छे, सारे बेकार, छोड़ो यार!!

संपादक
न्यूज़&व्यूज
श्योपुर (मप्र)

#हर_शेर_एक_तमाचा😊

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